सुनो पेड़ क्या बोल रहे हैं ….

चोट कुल्हाड़ी की

सहते सहते ,

अंतिम समय में

चलते चलते

सुनो पेड़ क्या 

बोल रहे हैं??

काट रहे हो आज

हमें तुम,

लेकिन सोचो 

धूप से जलकर,

सुस्ताने को तुम

छांव कहाँ से पाओगे?

जलने लगेगी 

जब यह धरती

तब जलन बुझाने को उसकी,

नीर कहाँ से पाओगे?

सूख चुके होंगे जब

ताल-तिलैया,

उनमें फिर भरने को

नीर कहाँ से लाओगे?

सुबह – सुबह नहीं मिलेगी

कलरव चिड़ियों की,

नहीं दिखेगी कोई गिलहरी

तब जीवन रंगने को,

कूची कहाँ से लाओगे?

काट रहे हो आज 

हमें तुम……

कल खेतों को नम करने को

जलद कहाँ से पाओगे??

अंतिम समय में चलते चलते

सुनो पेड़ क्या बोल रहे हैं?

अलका ‘सोनी’

बर्नपुर, पश्चिम बंगाल।