ईश्वर मर गया है ●

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निराशा

अंधेरे की ओट में खड़ी है

और लगता है यह रात 

जिंदगी से बड़ी है

आज कोई मासूम कली

फिर छली गई है

विकृति!

अपने अहम में फूल गई हो तुम

यही अहम कोढ़ बनकर फूटता है

इस चमन में

कोमल कमल कलियां

कांटों के कैक्टस में बिंध रही है

एक एक कर

मासूम कलियों के साथ

हो रहा यहां व्यभिचार

लगता है 

आत्मा के अंधेरे कोनों में

चेतना की लौ 

कहीं धुंधला गई है

हमारी धमनियों में 

अब खून की जगह

नीला पानी बहता है

हम अबोध थे

हमे अहसास होता था कि

कण – कण में ईश्वर है

जो सबका रक्षक है

किंतु यह सपना अब टूट गया

मन का वह भरम छूट गया

हमे लगा कि

 हमारा ईश्वर मर गया है

और मरते मरते भी 

कई परिवारों के सपने 

कर गया चकनाचूर

ओ काम पिपासु बुझदिल इंसान

भुला दी तुमने  हमी से सीखी थी

जो सभ्यता, जो सहूर

उन मासूमों का क्या दोष था

जिनको मरने से पहले 

तुमने मार दिया

अपनी अंधी वासना में

ईश्वर मर गया तो क्या

उन मासूम कलियों के

 आंसुओं की चीख

ज्वालामुखी बन फूटेगी एकदिन

और भस्म कर देगी

 इन व्यभिचारियों को। 

◆ राजकुमार जैन राजन  

चित्रा प्रकाशन  

आकोला -312205 (चित्तौड़गढ़) राजस्थान  

मोबाइल :  9828219919