कभी पढ़ने आती थी
हमारे स्कूल में,
सपेरो की बस्ती से–
एक सपेरे की बिटिया.
वे तमाम किस्से सुनाती थी
साँपो के अक्सर,
वे खुद भी
साँपो से खेलना जानती थी,
पर वे मासुम नही जानती थी,
इंसानी साँपो का जहर,
एक दिन–
उसी मासूम की नग्न लाश,
उसकी बस्ती से पहले,
पड़ने वाले
एक झुरमुट में पाई गई,
मै सिहर गया!
उस मासूम की नग्न लाश देख,
मै इतने वर्षो के बाद भी,
अपनी उस मासूम छात्रा को
भूल नही पाता,
हर नाग पंचमी को वे मेरी जेहन मे
उभर आती है,
और पुछती है मुझसे
कि बताईये न सर,
कि कैसे चुक गई,
आखिर
अपने पूरे बदन पे रेंगे हुये
नाखूनी साँपो से,
एक सपेरे की बिटिया.
रंगनाथ द्विवेदी.
जज कालोनी, मियांपुर
जिला–जौनपुर 222002 (U P)
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