नई दिल्ली । भविष्य के युद्धों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस अहम भूमिका निभाएगी। इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना खुद को नॉन-कन्वेंशनल वॉरफेयर (गैर-पारंपरिक युद्ध) के लिए तैयार कर रही है। युद्ध के मैदान में स्वार्म-ड्रोन स्ट्राइक यानी दुश्मन को घेरकर उस पर ड्रोन से हमला करने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह तैयार है। इंडियन आर्मी की मैकेनाइज्ड फोर्स में सबसे पहले स्वार्म-ड्रोन को शामिल किया गया है। भविष्य के युद्ध तोप, गोला बारूद और बंदूकों की बजाय आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ड्रोन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर लड़े जाएंगे।
इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर भारतीय सेना खुद को नई तकनीक के साथ अपग्रेड कर रही है। भारतीय सेना ने 2 स्वदेशी स्टार्ट-अप्स से ये स्वार्म-ड्रोन तकनीक हासिल की है। इस तकनीक का इस्तेमाल ऑफेंसिव और डिफेंसिव दोनों तरह के ऑपरेशन में किया जाएगा। यानी दुश्मन की निगरानी के अलावा उस पर हमले में भी स्वार्म-ड्रोन तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। भारतीय सेना के अधिकारियों के मुताबिक डिसरेप्टिव टेक्नोलॉजी से लैस स्वार्म-ड्रोन्स के मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री और टैंक ब्रिगेड में शामिल होने से भविष्य की चुनौतियों से लड़ने में खासी मदद मिलेगी।
इससे ग्राउंड फोर्सेज को एरियल मैन्युवेरेलिटी में भी मदद मिलेगी। भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर तैनात अपनी मैकेनाइज्ड फोर्सेज को सबसे पहली यह तकनीक देने की तैयारी कर रही है। इसके पीछे की वजह चीन के नापाक इरादों और मूवमेंट्स की निगरानी करना और दुर्गम क्षेत्रों में जवानों को तकनीक के जरिए सहूलियत देना है। स्वार्म-ड्रोन सिस्टम में बड़ी संख्या में ऐसे एरियल व्हीकल्स होते हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से युक्त होते हैं। एआई तकनीक के चलते ये सभी एरियल व्हीकल कंट्रोल सेंटर के साथ तो संपर्क में रहते ही हैं साथ ही आपस में भी जुड़े होते हैं। एआई की स्वार्मिंग एलगोरिदम के चलते ये सभी ड्रोन अपनी-अपनी जिम्मेदारी खुद बांट लेते हैं। इसके अलावा बिना एक दूसरे से टकराए सर्च एरिया में जाकर टारगेट को भी लाक कर लेते हैं। ऑटोमैटिक टारगेट रिकॉग्निशन तकनीक (एटीआर) की मदद से स्वार्म-ड्रोन खुद टैंक, गाड़ियों और सैनिकों की पहचान करने में सक्षम होते हैं और कंट्रोल स्टेशन को इसकी जानकारी देते हैं।
इससे दुश्मन के मूवमेंट और उसकी ताकत का पता चल जाता है। भारतीय सेना को स्वार्म-ड्रोन इसलिए चाहिए ताकि टेक्टिकल कमांडर्स को सर्विलांस के दौरान एक फोर्स मल्टीप्लायर मिल सके। फील्ड कमांडर्स को निगरानी के दौरान दुश्मन के एयर-डिफेंस सिस्टम, कमांड एंड कंट्रोल सेंटर और मिलिट्री गाड़ियों का जो आईएसआर यानी इमेजेरी सैटेलाइट एंड रडार इनपुट मिलते हैं, उनकी ड्रोन तकनीक से रेकी की जा सके।
इसके अलावा चीन से लगी पर्वतीय सीमाओं में टैंक युद्ध की तैयारी के उद्देश्य से भारतीय सेना ने अपने भविष्य के हल्के टैंक के लिए विनिर्देश जारी किए हैं, जिसे जोरावर नाम दिया गया है। रक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों कहा कि अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों, सीमांत इलाकों और द्वीप क्षेत्रों के अलावा मैदानी, अर्ध-रेगिस्तान और रेगिस्तान में किसी भी संकट की स्थिति में मध्यम युद्धक टैंकों की जरूरत को देखते हुए अब इसे सेना में शामिल करना महत्वपूर्ण हो गया है।
सूत्रों ने कहा कि मौजूदा खतरे और संभावित भविष्य के युद्धों की रूपरेखा ने नई चुनौतियों को जन्म दिया है, जिसके लिए भारतीय सेना को तैयार रहना होगा। उन्होंने कहा कि भारतीय सेना में टैंकों की खूबियों में मध्यम और हल्के प्लेटफार्म की खासियतें और लचीलापन होना चाहिए। भारतीय सेना के पास पिछले सभी युद्धों में हल्के टैंक को फोर्स मल्टीप्लायर के रूप में सफलतापूर्वक नियोजित करने का अनुभव है। टी-72 और टी-90 टैंक मुख्य रूप से मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में संचालन के लिए डिजाइन किए गए थे। कच्छ के रण के सीमांत इलाके में तैनात होने पर उन्हें बाधा का सामना करना पड़ता है।