उज्जैन। अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाकाल मंदिर में बन रहे कॉरिडोर महाकाल पथ का लोकार्पण करेंगे। लोकार्पण से पहले ही कॉरिडोर पर विवाद शुरू हो गया है। दरअसल उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर परिसर जल्द ही एक नए भव्य स्वरूप में नजर आएगा। प्रथम चरण में लगभग 400 करोड़ रुपये की मंदिर विस्तार योजना के अंतर्गत बाबा महाकाल मंदिर परिसर को सजाया और संवारा जा रहा है। इस विस्तार योजना के तहत महाकाल मंदिर में 920 मीटर लंबा खूबसूरत कॉरिडोर, का निर्माण किया जा रहा है। कॉरिडोर के पास भगवान शिव और अन्य देवी देवताओं की विशाल 127 मूर्तिया लगाई जा रही है। प्रवेश के लिए भव्य द्वारा भी बनाया जा रहा है। कॉरिडोर में निर्माण एजेंसियों ने फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक से बनीं देवी-देवताओं की विशाल मूर्तियां लगा दी है। जिसको लेकर उज्जैन मे विवाद शुरु हो गया है। धार्मिक दृष्टि से मंदिर प्रांगण में फाइबर रेनफोर्स प्लास्टिक से बनीं मूर्तियॉ नहीं लगाई जाती है। मंदिर में अष्टधातु या पत्थरों को तराश कर बनाई गई मूर्तियां ही लगाई जाती है। फाइबर और प्लास्टिक से बनी मूर्तिया लगाना पर्यावरण की दृष्टि से भी उचित नहीं है। सनातन संस्कृति में पत्थर की मूर्तियों का विशिष्ठ महत्व और पवित्रता होती है। सरकार ने लगभग 97 करोड़ खर्च कर प्लास्टिक और फाइबर की मूर्ति लगवाकर लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पंहुचाने का काम किया है।
-प्लास्टिक और फाइबर सनातनी संस्कृति के विरुद्ध
उज्जैन संभाग के पूर्व भाजपा के प्रवक्ता और वास्तुविद आचार्य तुलसी खत्री ने महाकाल कॉरिडोर पर प्रश्चिन्ह लगाया है। सरकार ने कॉरिडोर में प्लास्टिक और फाइबर की मूर्ति लगाने पर सनातनी अस्था और परंपरा को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। अनादि काल से मंदिर परिसरों में पत्थर का उपयोग कर निर्माण कार्य और मूर्तियों को आकर दिया जाता रहा है। मंदिर परिसर की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा और परिसर की पवित्रता को सौन्दर्यीकरण के नाम पर सनातन संस्कृति को खत्म किया जा रहा है।