बाद में केवल पछताते

अभिमान से हैं हम चूर

असीमित इच्छाओं से भरपूर

लेकिन आगे नहीं बढ़ते

क्योंकि अभिमान हमें रोकते

बना लेते स्वयं अदृश्य दीवार

फिर दिखाई नहीं देता आरपार 

अभिमान लेता है जकड़

मजबूत होती उसकी पकड़

अपनों की आवाज सुनाई नहीं देती

सुनने से भी अनसुनी हो जाती

सोचते स्वयं को सागर, पर होते हैं कूप

मूक – बधिर होकर बनाते कई रूप

दर्प से अभिभूत लेते, अपने को समेट

दंभ से भरकर, सहमे हुए को लेते लपेट

 पता नहीं चलता लेकिन मर – से जाते

सब को खोकर कामयाब तो हो जाते

लेकिन शरीर में मृत प्राण शेष रह जाते

बाद में अपनों को खोकर केवल पछताते।।

आनंद मोहन मिश्र

अरुणाचल प्रदेश

9436870174