बोझ

ईश्वर ने बोझ दिया है

या स्वयं मनुष्य ने लिया है?

फिर लालच या मुफ्त की खाकर

बोझ उठा लिया है।

सोचने वाली बात है –

यदि बोझ दिया है तो

उठाने के लिए हौसला दिया है।

कंधा भी दिया है।

कंधे के कमजोर होने से

श्रीकृष्ण – सा मित्र दिया है।

सम्मान और खुशी के साथ

मित्र ने मित्र का बोझ लिया है।

ध्यान से देखते पर लगता ऐसा

भगवान ने तो सरल ही भेजा है।

जन्मदाता हमारा बोझ उठाते हैं

हम उनका बोझ नहीं उठा सकते हैं।

उस समय लाभ – हानि देखते हैं।

बेशर्मी से इंकार कर देते हैं।

कंधे के कमजोर होने का बहाना करते हैं

बोझ बोझ बोलते हुए 

सब कुछ छोड़ते हुए विदा हो जाते हैं।

आनंद मोहन मिश्र

विवेकानंद केंद्र विद्यालय यजाली

लोअर सुबनसिरी जनपद

अरुणाचल प्रदेश

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