नदियां,नदियां होती हैं,
स्त्रियां, स्त्रियां होती हैं,
पर नदियों की तरह स्त्री भी निश्चल, निर्झर होकर सतत बहती रहती है निर्बाध लक्ष्य की तरफ,
स्त्री का जीवन भी
नन्हीं पुत्री, बेटी से शुरू होकर
बहन, पत्नी और मां के रूप में
दिव्य, विशाल हो जाता है,
नदिया भी पहाड़ की
छोटी कंदराओं से
छोटी धार के रूप में
निकलकर
पवित्र गंगा, जमुना ,
नर्मदा का एक विशाल तट
अपने संग बनाती हैं,
और समेट लेती है
तमाम किनारों की
विसंगति और समाजिक बुराइयों को,
और अपने में
समाहित कर प्रवाहित
कर शुद्ध कर देती है
निश्छल जल की तरह।
स्त्री भी दो वंशों को
आत्मसात कर पति के
तमाम कर्तव्यों का बोध
बनकर पुत्र, पुत्रियों
को जन्म देकर
मां के रूप में
एक नए विशाल वटवृक्ष
को वंश की तरह जन्म देती है,
और जन्म देती है
एक नई सृष्टि को।
समेट लेती है तमाम
पारिवारिक विसंगतियों को
अपने आंचल में और
अपने अंतःकरण से करती है
शुद्ध,
एक शाश्वत सत्य की तरह,
अनथक चलती रहती है,
नदियों की तरह
अपने कर्तव्य की वेदियों पर,
निर्बाध बिना थके अनवरत,
और संकट के समय परिवार की रक्षा के लिए विकराल दैवीय
रूप लेती है,
नदियों की तरह,
बरसात में नदिया जल प्लावित करती हैं,
नदियों की तरह स्त्री
और स्त्रियों की तरह नदियां पवित्र और भोली होती है।
संजीव ठाकुर, रायपुर, छत्तीसगढ़, 9009 415 415,