अलविदा

अनुभवों की आंच पर 

जज्बातों को सेंकना चाहती हूं

अपनी मासूम सी नादानियों पर 

तजुर्बे की मोहर लगाना चाहती हूं 

कर दिया है बंद चाहतों की किताब को  

   दिल की तिजोरी में बहुत पहले ही

 मन के रेगिस्तान में अब 

खुद को टटोलना चाहती हूं 

थक चुकी हूं 

जिंदगी की आजमाइश से बहुत मैं  

 किसी दरख़्त की छांव में 

फगुनहट बयार की थपकी पर 

बस सुकून से सोना चाहती हूं 

प्रेम में एक हो जाना

 कहते किसको हैं नहीं पता 

इस बेमरौवत जिंदगी से 

न अब कोई मरौवत चाहती हूं

बंद कर दो अब तो

 शिकायतों की फेहरिस्त अपनी

 इस रंग बदलते संसार को 

मैं बस अलविदा कहना चाहती हूं…

डॉ.रत्ना मानिक

टेल्को,जमशेदपुर

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