conjunctivities कजंक्टिवाईटिस
यह आँखों बीमारी है। इसे Pink eye मतलब गुलाबी आँखे भी कहतें हैं। इस बीमारी के कारण आँखों में कीचड़ जमा हो जाता है।
आँखों का लाल होने के बहुत से कारण है। किसी मादक पदार्थ के अधिक मात्रा में सेवन से भी आँखें लाल होती है। आँखों में कचरा चले जाने से भी आँखे लाल होती है। बुखार तेज होने पर भी आँखे लाल होती है। ज्यादा देर तक नींद न आने से भी आँखे लाल होती है। पेट में अधिक गर्मी बढ़ने से भी आँखे लाल होती है।
अत्यधिक क्रोध करने पर भी आँखें लाल हो सकती है।
इनदिनों सियासत में लाल आँख नामक एक मुद्दा बहस का विषय बना हुआ है।
लाल झंडा साम्यवाद का प्रतीक है। अपना एक पड़ौसी देश है। यहाँ के लोग नाटे कद के होतें हैं। इनकी आँखे छोटी होती है।
इस देश में तानाशाही का राज चल रहा है। ये नाटे कद के लोग बहुत शातिर होतें हैं।
जर्मनी के लोग चीनी लोगों के लिए कहतें हैं,चाइना cheap and cheat मतलब चीन सस्ता और धोखे बाज भी है।
सन 1962 में हम इनसे धोखा खा चुके हैं। हिंदी चीनी भाई भाई कहकर इन्होंने हमारी पीठ में छुरा भोंकने की कोशिश की है।
आज सियासत में इन्हें लाल आँख दिखाने की धमकी पर देश में बहस चल रही है।
महत्वपूर्ण सवाल तो यह है कि कोई अपने सीने के नाप को कितने भी इंच का बताएं?
क्या इन नाटे कद के शातिर लोगों को सिर्फ आँखे लाल करके दिखाने मात्र से अपने कर्तव्य की इतिश्री हो जाएगी?
एक ओर हम चीन में निर्मित उत्पादों का बहिष्कार करतें हैं दूसरी ओर हमारी आयात नीति के तहत ही चीन में निर्मित उत्पाद देश में आतें हैं?
हम छोटे खेरची विक्रताओं को चाइनीज उत्पाकों बेचने पर प्रताड़ित करतें हैं।
प्रताड़ित करने वाले स्वयं राष्ट्रभक्त कहलातें हैं।
सच में राष्ट्रभक्तो को विदेशी उत्पादकों का बहिष्कार करना ही चाहिए?
लेकिन साथ ही राष्ट्रभक्तों को यह जानकारी भी होनी चाहिए कि, कोई भी विदेशी उत्पाद बगैर अपने राष्ट्र की आयात नीति के देश में ना तो आ सकता है,नाही लाया जा सकता है।
आयात नीति के अंतर्गत बहुत सी कानूनी प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है। सबसे पहले आयात लाइसेंस लेना पड़ता है।
बेचारें छोटे विक्रेताओं की क्या औकात जो किसी विदेशी देश से कोई भी उत्पाद आयात कर सके।
हम हमेशा गंगोत्री को छोड़ छोटे छोटे जलाशयों सकरे नालों को प्रताडित करतें हैं।
यह मुद्दा सिर्फ लाल आँख करने से सुलझने वाला नहीं?
एक ओर दोस्ती करना दूसरी ओर लाल आँख करने की धमकी यह बात कुछ हज़म नहीं होती है।
यह तो ऐसा प्रतीत होता है कि सत्ता के नशे में चूर लाल आँखे सिर्फ दिखावटी होतीं हैं।
इस मुद्दे पर सन 1974 में प्रदर्शित फ़िल्म *रोटी* के इस गीत की कुछ पँक्तियों का स्मरण होता है। इस गीत को लिखा है,गीतकार *आंनद बक्षीजी*
*ये पब्लिक है सब जानती है।*
*ये जो पब्लिक है सब जानती है*
*अजी अंदर क्या है बाहर क्या है*
*ये सब कुछ पहचानती है*
*अरे भीख न मांगे क़र्ज़ न मांगे*
*ये अपना हक मांगती है*
जनता की सहनशीलता को जनता की कमजोरी समझना नादानी है।
जिस दिन जनता लाल आँखे दिखाएगी बस समझना…….?
शशिकांत गुप्ते इंदौर