सुबह दस बज रहे थे। ललिया सड़क के किनारे अपनी कैब का इंतजार कर रही थी। तभी उसकी सहेली बिमला वहाँ आ पहुँची। उसने ललिया को देखकर पूछ लिया – ऐ बहिन अटैची लेकर कहाँ जात हऊ? ललिया ने कहा- राँची जात हई। कैबवा बुक करलै हई। देखा थोड़के देर में आवत होई। बिमला ने कहा – तू एक दम मूरख हऊ! मूरख! आज कै जमाना में कौनो ओला बुक करवाला? तोहकै दिमाग न ह! भारत सरकार एक-एक यात्री का खयाल रखत ह और तू ओला पर सवार होकर जात हऊ। अब पता चलल कि जीड़ीपी का भट्टा तोहरे कारन बैठल है।
बिमला की चुभती बातों से ललिया आहत होते हुई बोली – ऐ बहिन हमरे ओला में जाए से देस का भट्टा कैसे बैठ जाइ? काहे अनाप-सनाप बकत हऊ। आपन पैसा लगाइके रांची जाए से कौनो पाप करदेइले हइ? अच्छा ई बतावा हमरे अकेले के वासते सरकार का करी? हम अपने रासते जाए खातिर यहाँ खड़ा बाटी, और तू हमकै बेफिजूल डाँटत हऊ। इस पर बिमला ने आँखें बड़ी करती हुई बोली – तोहके के पता नहीं सरकार एक-एक यात्री के वासते राजधानी एक्सप्रेस चलावत ह! जेकरे हर डिब्बा में दमदार एसी लगल बाटी। अब तोही बतावा, जब सरकार एतना सुविधा देत ह फिर काहे ओला में जात हऊ। ई ओला-वोला प्राइवेट गाड़ी है। एम्मन पैसा लगैबु प्राइवेट क लाभ होइ। एही वासते कहत रही कि राजधानी बुक करवा ल।
ललिया ने संदेह भरी दृष्टि से पूछा – तोहरे कहे पे अगर ओला छोड़कै राजधानी का टिकट ले लई तब हमरे अकेले वासते गाड़ी चलावे क बेवकूफी काहे करी! राजधानी ऐसन-वैसन गाड़ी न ह। जे एक-एक यात्री के वासते चलावल जाइ। ऐ बहिनी! तू अपने रास्ते जा हम अपने। हमके बक्श द! बिमला ने तुरंत कहा – देखा बहिनी! सरकार का अच्छाई और बुराई दूनो बतावे हमार फरज है। जब सरकार अच्छा काम करत ह तब काहै होके बदनाम करेके? एहरे बनारसर हिंदू विश्वविद्यालय मे पढ़ाई करै वासत अनन्या बहिन आयल रहनीं। तोहरे मती राँची जाए खातिर ओला बुक न करवइनी! राजधानी बुक करवा लेहनी। उही में बैठके पहुँच गइनी अपने घरे। डाल्टनगंज तक कइ मिला रहनी, लेकिन कुछ अपने और कुछ प्रशासन के कारन उतरगइना। लेकिन अनन्या अकेले के लेके राजधानी गाड़ी ऐसन धड़धड़ाके चलल कि पूछा मत। एकदम सीधे जाके राँची में रुकल। रुकले के साथ जैसे अनन्या मैडम उतरनी अखबार, टीवी वालन फोटो पर फोटो, वीडियो बनावे लगना। राजधानी में सफर करलै यात्रा क यात्रा ऊपर से वाहवाही अलग। अब तोहि बतावा ऐसन सौभाग्य कहाँ मिलत होइ। सरकार ई सब एहि वासते कर पावत ह कि रेलवा तोहरे-हमरे जैसन के हाथै लगल ह। बेफिजूल रेलवा के प्रआवेटीकरण का हो हव्वा होत ह।
यह सब सुन ललिया ने कहा – ऐ बहिनी ठीक कहत हऊ। अबकी बार छोड़ दा। ऊ देखा ओला आवत ह। अब हम राजधानी में चढ़के जाए एतना समय न ह। ऊ अनन्या त कानून क पढ़ाई करत रहनी ह। उही खातिर राजधानी धड़धड़ाए के चल पड़त। न चलत त सरकार का प्राइवेटीकरण का हव्वा पानी-पानी हो जात। राजधानी के नाम पर राजहानि हो जात। जे हिसाब से प्राइवेटीकरण होत ह ऊ हिसाब से ऊ दिन दूर नाहि जब सरकार भी प्राइवेट क बने लगी। सरकार का मतलब जनता का पैसा ह। ऊ पैसा ऐसे खा या वैसे खा। खावै खातिर त ई दुनिया चलत ह। ऐ बहिनी! हम छोड़ द। अब हम चलत हइ। इतना कहते हुए ललिया ओला चढ़कर बिमला के मुँह पर सवाल का गोला दाग गई।