“विश्वास की डोर थामें रखिए” 

कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ चीज़ों की सच्चाई जानते हुए भी अनदेखा करके अनुसरण करते रहना चाहिए मन को तसल्ली मिलती है और उम्मीदें ज़िंदा रहती है। उदाहरण के तौर पर देखें तो, आज कोई भी त्योहार किसी एक मज़हब का होकर नहीं रह गया, हमारे देश में हर त्योहार हर जात-पात के लोग मिलकर मनाते है; जिसमें क्रिसमस के जलवे अनोखे होते है। बच्चें, बड़े सब सैंटा क्लाॅज़ से उम्मीद लगाते कोई न कोई विश मांगते है।

पर क्या सैंटा क्लाॅज़ जैसा कोई फ़रिश्ता सच में क्रिसमस की रात आता है? और हर नाउम्मीदगी को खुशियों मे बदल जाता है? या महज़ हमारी कल्पना में बसा फ़रिश्ते सा किरदार दिल को बहलाने वाला भ्रम मात्र होता है।

कहा जाता है कि एक बेहद गरीब पिता को तीन बेटियों की शादी करनी थी, सेंट निकोलस को ये बात पता चली तो वह चुपचाप उस गरीब पिता के घर गए और उनके आंगन में सूख रहीं जुराबों में सोने के सिक्के भर कर लौट आए। उसी फ़रिश्ते को उम्मीद के रुप में याद करके सैंटा का किरदार गड़ा गया है। 

क्रिसमस नजदीक आते ही हर तरफ़ उल्लास का माहौल रहता है। सैंटा क्लोज़ हो या ना हो पर कहीं न कहीं ये हमारी कमज़ोरी में सकारात्मक हौसला भरने का काम जरूर करता है। हम इंसान सच में डरपोक, ज़िंदगी की चुनौतियों से घबराने वाले और संघर्षों से थकाने वाली फ़ितरत के मारे होते है। हर छोटी सी बात पर हताश होते नकारात्मकता का दामन थामें कहीं कोई चमत्कार और जादू की आशा करते मन को बहलाने वाली हर चीज़ पर यकीन करते ढूँढते रहते है। जैसे डूबता हुआ इंसान तिनके का सहारा ढूँढता है, इसमें कुछ गलत भी नहीं। 

ज़िंदगी जीने का सहारा और उम्मीद की डोर होती है ये सारी चीजें। भले सच में कोई फ़रिश्ता क्रिसमस की रात आसमान से ना उतरता हो, भले हमारे एक भी सपने में रंग न भरता हो, पर एक शक्ति या एक आस से हम लिपटे होते है। हमारा आंतरिक मन ये मानता है की इस फ़रिश्ते से मैं जो भी मांगूँ मिल जाएगा।  विश्वास की डोर मजबूत हो तो चमत्कार भी होते है, जादू भी होता है बस उस आस से जुड़े रहिए। सैंटा क्लोज़ एक इमेजि​नेशन ही सही, इस भ्रम के साथ अपनी श्रद्धा को कायम रखते ऐसी चीज़ों के साथ बनें रहिए अपनी आत्मसंतुष्टि को पुचकारते रहिए। ज़िंदगी कुछ आसान लगेगी। और इसी बहाने हर त्योहार को नज़दीक से समझने का और जश्न मनाने का मौका मिलेगा।

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर