आपने महाभारत पढ़ा होगा। न भी पढ़ें होंगे, तो भी जानकारी अवश्य रखते होंगे। जब भीष्म वाणशैय्या पर थें,तो युधिष्ठिर ने उनसे जीवन के सारे प्रश्न पूछे। जब राज कर स्वेच्छा से स्वर्ग की ओर चलें,तब युधिष्ठिर के चार भाई हिमालय में गल गए। केवल युधिष्ठिर ने ही स्वर्ग प्राप्त किया था। स्वर्ग में भीष्म पितामह से भेंट होती है। युधिष्ठिर ने पितामह से मिलते ही पूछा,’ पितामह आपसे तो मैंने धरती पर बहुत सारे प्रश्न पूछें थें। परंतु, एक प्रश्न रह गया था। पितामह! कलिकाल में बिहार का शिक्षातंत्र कैसा होगा? वहां के गुरु और शिष्य कैसे होंगे?
भीष्म पितामह के घाव अब भी हरे थें,जो अर्जुन ने वाण से घाव किया था। भीष्म ने करवट बदली और कहा, ‘कलिकाल क्यों? बिहार में सभी युगों में गुरू और शिष्य अव्वल हुए हैं, और रहेंगे।
बिहार के ही गुरू ने सतयुग में राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ली थी। गुरु विश्वामित्र ने ‘परीक्षा’ शब्द का पहला प्रयोग किया था। और उन्होंने बता दिया था कि संपूर्ण आर्यावर्त में जो राजा सत्यवादी होगा, उसके बेटे को कफन तक नसीब न होगा। सत्याचारण से वे क्रोधित होते थें। सत्य पर चलने वालों को सरे बाजार में बिक जाने को विवश कर देते थे।उनके भय से संपूर्ण आर्यावर्त सत्याचारण ही छोड़ दिया था। तुम्हें ख्याल होगा,जब मोहनदास बचपन में सत्याचारण करने लगें थें,तब गुरु ने इशारा करके उन्हें दूसरों से देख लेने का संकेत किया था। बिहार का गुरू ही सत्याचारण नहीं चाहता है। हिन्दी के सुप्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद ने ‘चंद्रगुप्त’ नाटक में चाणक्य से कहलवाया है -‘ चाणक्य सिद्धि चाहता है,साधन चाहे जैसा भी हो।’ नाटककार ने बिहार के शिक्षकों की सार्थकता दे रखी है।
जहां तक शिष्य का प्रश्न है।इस क्षेत्र में बिहार की गौरवशाली परंपरा रही है। बिहार की भूमि हमेशा से इस क्षेत्र में उर्वर रही है। गुरु विश्वामित्र के शिष्य राम-लक्ष्मण ने गुरूओं के गुरु महादेव के धनुष को खंड -खंड कर दिया था। यह बिहार भूमि की देन थी। उन छात्रों ने बता दिया था कि वैवाहिक आचरण के लिए हर धरी हुई परंपरा को खंड -खंड कर देगा। वह चाहे कोई हो,चाहे कितनी ही कीमत वाला क्यों न हों। वह हर मूल्यों को ठोकर मारकर नष्ट कर देगा। इतना ही नहीं जब गुरु परशुराम टूटे हुए धनुष को देखकर कुपित हुए,तो दोनों छात्रों ने जनक की भरी सभा में आचरण शील गुरु परशुराम का मजाक उड़ा दिया था।
द्वापर में कर्ण ने अपनी जिज्ञासा पूर्ति करने के लिए परशुराम के सारे नियम नियमों को ठेंगा दिखाकर परशुराम के आश्रम में प्रवेश पा लिया था। प्रवेश ही नहीं पाया था, बल्कि विश्ववासभाजन भी बन गया था। परशुराम ब्राह्मणों को शिक्षा देते थे।कर्ण क्षत्रिय था। कर्ण ने प्रवेश में धृष्टता कर बैठा था।कर्ण जब वापस हस्तिनापुर आया तो द्रोणाचार्य के परीक्षा भवन मैं अनाधिकार घुस आया था।अर्जुन ने धनुष-वाण छीन लेने का डंका बजा दिया था। दुर्योधन बहुत समझदार था। ऐसे कुशल और दक्ष छात्रों की कीमत बिहार हमेशा करते आया है। दुर्योधन ने उसे अंग देश का राजा बना दिया था।वह अंग देश बिहार का ही भू -भाग था। चूंकि प्रतिभा संपन्न छात्र बिहार में ही गौरव प्राप्त कर सकते हैं।
प्राचीनकाल में बिहार में एक ऐसा छात्र हुआ था जिसने बिना पिंजरे खोलें ही पिंजरे से बाघ को निकाल दिया था।इस प्रतिभा संपन्न छात्र को बिहार -गुरू चाणक्य ने अपना शिष्य बना लिया था। हस्तिनापुर में तो एक अभिमन्यु पैदा हुआ था। बिहार में हर गली -कूचे में ऐसा अभिमन्यु पैदा होते रहते हैं।हर चौक-चौराहे पर मिल जाएंगे। हस्तिनापुर के अभिमन्यु ने तो चक्रव्यूह के छठे दरवाजे तक ही तोड़ने का ज्ञान गर्भ में सीखा था। सातवे दरवाजे में फंस गया था। बिहार का अभिमन्यु छठे क्या व्यूह के सातवें दरवाज़े को भी नष्ट -भ्रष्ट कर देता है।हर व्यूहों को क्षत -विक्षत कर देता है।कई द्रोणाचार्य पैदा होते रहें, कितने ही चक्रव्यूह बनते रहें। बिहारी अभिमन्यु इतना संस्कारित है कि हर चक्रव्यूह को खंडित करता रहेगा, क्योंकि हर अभिमन्यु का चाचा अपनी गदा से चक्रव्यूह के सातवें दरवाज़े तोड़ने की हैसियत रखता है। इसी श्रृंखला में चाहें रुबी राय हो ,मेधा चक्रव्यूह हो या व्यापम चक्रव्यूह हो। इस बार सीबीएसई के दसवीं, बारहवीं हो या फिर बीपीएससी या फिर कर्मचारी चयन आयोग के प्रश्न पत्र लीक कर बिहारी अभिमन्यु ने प्रदेश को ही नहीं देश और विदेशों की आंखों में उंगली कोचकर बता दिया कि तुम चाहे जितने भी व्यूहों की रचना करते रहो, मैं इसे तोड़ता रहूंगा। वह सीना ठोककर कह रहा है कि मैं चक्रव्यूह को तोड़ता रहूंगा क्योंकि मेरे पास द्रोणाचार्य जैसे गुरु हैं (जो चक्रव्यूह बनाते हैं और तोड़ने का भेद भी बताते हैं)। मेरे पास अर्जुन जैसा पिता है और भीम जैसा चाचा है। मेरे पास चक्रव्यूह भेदने का मेधा है।
भीष्म थक चुके थे। उनके शरीर के हर घाव इस घटना से हरे हो गये थें। उन्होंने मौन धारण कर लिया था।
प्रो• राजेश्वर प्रसाद
(सेवानिवृत्त प्राध्यापक)
नालंदा, बिहार