टूटते और बिखरते हुये लोगों को प्रायः यह सलाह दी जाती है कि वह अपना आत्मविश्वास न खोयें, महान लोगों के बारे में भी कहा जाता है कि अमुक-अमुक जन बड़े आत्मविश्वासी थे। वास्तविकता भी यही है कि आत्मविश्वास एक बहुत ही अद्भत चीज है परंतु मुझे जो बात सबसे ज़्यादा खटकती है वह यह कि लोग कहते हैं कि “आत्मविश्वास मत खोना” ,कोई भी आत्मविश्वास अर्जित करने की बात नहीं करता..कोई यह चर्चा नहीं करता कि आत्मविश्वास पाया कैसे जाये, अब जो चीज़ सामने वाले के पास है ही नहीं आप उससे वह चीज न खोने देने की बात कर रहे हैं,ऐसे में उसका क्या भला होगा,उल्टे परेशानी बढ़ना तय है।
हम बात करेंगे आत्मविश्वास अर्जित करने के बारे में,अगर मैं आपसे यह प्रश्न करूँ की आत्मविश्वास क्या है तो आपका जवाब क्या होगा? आत्मविश्वास के बारे में मैंने जो पाया वह यह कि आत्मविश्वास एक मानसिक अवस्था है ,वह अवस्था जिसमें हमें अपनी सामर्थ्य का विधिवत बोध होता है और यह तो शास्वत सत्य है कि बुद्ध विचलित नहीं होते,आत्मविश्वास को अर्जित करना भी बोध तक की यात्रा है जिस क्षण आपको बोध हो गया उसी क्षण आपमें आत्मविश्वास प्रस्फुटित हो जायेगा,फिर आपको उसे खोने से बचाना होगा।अब प्रश्न यह होगा कि बोध कैसा ? इस प्रश्न का उत्तर भी एक प्रश्न में निहित है वह प्रश्न यह है कि आप विश्वास किस पर करते हैं,अर्थात विश्वास का मानक क्या है? मेरी खोज कहती है कि विश्वास का मानक है जानना,अर्थात हम विश्वास उसी पर करते हैं जिसे हम जानते हैं और विश्वास करना भी उसी पर चाहिये जिसे हम जानते हों,यहाँ पर जानने का अर्थ थोड़ा गहरा है अतः तलहटी में हाथ-पैर पटक कर इसका अर्थ लगाने की त्रुटि कदापि न करें,यह स्पष्ट हो चुका है कि विश्वास का मानक है जानना,अब आइये आत्मविश्वास पर तो आत्मविश्वास का मानक भी ‘जानना’ ही होगा,किसे जानना? ‘आत्म’ को…अर्थात आत्मविश्वास का मानक है ‘स्वयं को जानना’ जब आप स्वयं को जानते होंगे तभी आपको स्वयं पर विश्वास हो सकता है,कह सकते हैं कि आत्मज्ञ ही आत्मविश्वासी हो सकता है तो हम जिस प्रश्न को लेकर चले थे कि बोध कैसा,तो उसका उत्तर है “आत्मबोध” अर्थात अपनी शक्ति और अपनी प्रवृत्ति का बोध,उदाहरण के तौर पर देखिये सूरज को,नदी को,समुद्र को…यह कभी विचलित नहीं होते क्योंकि इन्हें आत्मबोध होता है।इस प्रकार आत्मविश्वास के प्राकट्य का मार्ग यही है कि आप अपने अंदर की यात्रा करें अपने आपको समझें,अपनी सामर्थ्य को जाने,फिर उसके बाद यह बात अच्छी लगेगी जब कोई कहेगा कि आत्मविश्वास खोने मत देना,क्योंकि इस समय तक आपके पास आत्मविश्वास होगा।आत्मविश्वास का अध्याय यहीं पर समाप्त नहीं होता परंतु आत्मविश्वास की आधारशिला यहीं से शुरू होती है तो चलिये प्रयास करते हैं,आत्म को जानने का अर्थात आत्मविश्वासी होने का।
..सिद्धार्थ अर्जुन
कवि/लेखक