कह दिया सब, नई बात को बहाना कोई बाकी रहे ,
चाहती हूं कि मेरी चाहतों में चाहना तेरा बाकी रहे !!
लिखा था एक दिन वो नाम, समय की रेत पर तुमने
यूं ही हर जनम उस रेत में, इश्क़ की नमी बाकी रहे !!
वैसे तो लिख ही देती हूं मन का सारा कुछ देखा-सुना
शब्दों की हर एक कशिश में, कविता कोई बाकी रहे !!
सुनों, लौटकर आते रहेंगे हम, यूं ही ज़मीं पे बार बार
हमारे बाद भी किस्सों में, कोई अफसाना बाकी रहे !!
हां, जैसे लौट आती हैं “बारिशों में बारिशें” धीरे धीरे ,
मुरझाए हुए फूलों में बीज सी एक जिंदगी बाकी रहे !!
यूं कब तक न हम साझेगें एक दूजे के एहसासों को ,
कुछ मेरा ‘चुप’ तू पहचानें, कुछ बातें तेरी बाकी रहे !!
जिंदगी की जद्दोजहद में, अब तक यूं ही मशगूल थे ,
तेरे किस्से-मेरे किस्से, थोड़ा सा मुस्कुराना बाकी रहे !!
सबको “सब कुछ” ही मिले, यहां ये जरूरी तो नहीं ,
हर जिंदगी में जिंदगी सी,,एक “जिंदगी” बाकी रहे !!
लौटकर जाता सूरज रोज़ थककर सांझ के आगोश में
“मनसी” कब तक रस्ता देखे, तेरा लौट आना बाकी रहे !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ, उत्तर प्रदेश