पानी-पानी समां है, बूंदों सा बिखर जाना
एक तेरा छा जाना..एक मेरा बरस जाना !!
बस एक यही तो “मौसम” है आजकल ,
एक तेरा यूं आना..एक मेरा लौट आना !!
क्या कहूं किस तरह ये “कविता” लिखी ,
एक मेरा चुप रहना..तेरा कुछ न कहना !!
जरूर, कुछ तो हवाओं को भी है खबर ,
एक तेरा यूं देखना..एक मेरा मुस्कुराना !!
न जानें किस “मोड़” पर यूं मिले हम-तुम ,
एक तेरा रुकना..एक मेरा ठहर जाना !!
सुन जिंदगी, चलेगा ऐसे ये कब तलक ,
एक तेरा लिखना..एक मेरा पढ़ते जाना !!
“मनसी”, क्या नाम दूं इस कशिश को मैं ,
तेरा नशे-ए-मन..एक मेरा बहक जाना !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
मेरठ, उत्तर प्रदेश