वैज्ञानिक तरीके से खेती कर सुरेश की आय में हुई वृद्धि –

खण्डवा/इन्दौर । खण्डवा जिले के ग्राम भण्डारिया के सुरेशचंद मांगीलाल मेहनती कृषक है। इन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक किया है, इनके पास 16 एकड भूमि है जो सिंचित है। जिसमें खरीफ मौसम में मूंग, सोयाबीन, मक्का लगाते है और रबी में गेहूं व चना का उत्पादन लेते है। उच्च शिक्षा होने से यह सदैव खेती में अधिक उत्पादन के लिए प्रयासरत रहते थे। किन्तु परम्परागत खेती के तरीको से यह संभव नहीं हो पा रहा था। रबी में गेहूं मुख्य फसल के रूप में लेते थे, जिसमें पुरानी प्रचलित किस्में लोकवन तथा पूर्व वर्षो के अनुसार उर्वरक, सिंचाई, का उपयोग करते थे, जिससे गेहूं फसल में लागत अधिक व उत्पादन कम होने के कारण शुद्ध आय कम प्राप्त हो रही थी।
कृषक सुरेश चंद के जागरूक होने के कारण उन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना के बारे में पता चला कि योजना अन्तर्गत गेहूं प्रदर्शन दिया जाता है, जिसमें अधिक उत्पादन देने वाली उन्नत किस्म दी जाती है। साथ ही वैज्ञानिक अनुशंसा के अनुसार बीजदर, बीजोपवार, उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व व पौध संरक्षण औषधी का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इसके पश्चात् वह कृषि विभाग के संपर्क में आकर गेंहू प्रदर्शन लगाने की इच्छा जाहिर की। जिसके बाद उन्हें गेहूं प्रदर्शन में उन्नत किस्म जे.डब्ल्यू 3336 का 1 हेक्टयर का प्रदर्शन लिया। बीज के साथ – साथ उन्हें वैज्ञानिक अनुशंसा के आधार पर तैयार फसल केफेटेरिया प्राप्त हुआ, जिसके अनुसार उन्होंने अनुशंसित बीज मात्रा 100 किग्रा/हेक्टे. बीजोपचार करके सीड ड्रील से बुवाई की।
अनुशंसा के आधार पर गेंहू की क्रांतिक अवस्था में सिंचाई न मिलने पर फसल उत्पादन सीधे प्रभावित होता है, उस सभी अवस्था में सिंचाई की जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। सूक्ष्म पोषक तत्व में जिंक सल्फेट 25 किग्रा प्रति हेक्टयर की दर से डाला जो कि पूर्व वर्षो में उनके द्वारा उपयोग नहीं किया जाता था। सभी तकनीकी के परिणामस्वरूप कृषक सुरेशचंद को 1 हेक्टयर प्रदर्शन से 50.90 क्वि. उत्पादन प्राप्त हुआ, जो कि इनकी कल्पना से परे था।
कृषि विभाग के गेहूं प्रदर्शन से उन्हें अभुतपूर्व लाभ हुआ है। दुगुने उत्पादन से कृषक की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। अन्य कृषक उनके प्रदर्शन से प्रभावित होकर यह नवीन किस्म व तकनीकी को अपनाकर अधिक लाभ व बेहतर उत्पादन लेना चाहते है। कृषक परम्परागत तरीकों को छोड़ अब वैज्ञानिक तरीकों से खेती करते है। अनुशंसित बीज दर से उन्हें बीज भी कम लगता है एवं उत्पादन भी अधिक प्राप्त हुआ है। कृषक सुरेशचंद कृषि विभाग के प्रति आभार प्रदर्शन करते है।