0  दिन  डरे  हुए  हैं  !  0

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सूरज –

सलाख़ों में है इन दिनों ।

अंधियारा –

हदें लांघ रहा है ।

सूरज –

रातों में बांध रहा है ।

पहरे –

सूराखों में हैं इन दिनों ।

तारे –

मुट्ठियों में भींच रहे हैं ।

दीवार –

जुगनुओं को खींच रहे हैं ।

माचिसें –

पटाखों में हैं इन दिनों ।

रातों में –

महल चौंधिया रहे हैं ।

तमस –

झोपड़ियों से बतिया रहे हैं ।

भिनसार –

ताखों में हैं इन दिनों ।

फूल –

कंटकों से घिरे हुए हैं ।

दिन –

अंधेरों से डरे हुए हैं ।

निबौलियां –

दाखों में हैं इन दिनों ।

+ अशोक आनन +

    मक्सी