कहूं कैसे , बताओ तो..
मुझे तो सही से बताना भी नहीं आता !!
जी भरके रो गई थी मैं तब बारिशों में ही
आंसूओं को सही से छिपाना नहीं आता!!
आते-आते रह जाती हूं कितनीं ही वहीं
मुझे तो सही से आना भी नहीं आता !!
रूठ जाने की आदत पुरानी नहीं है मेरी
तुम्हें तो सही से मनाना भी नहीं आता !!
कहते फिरते हो मेरा कुछ भी मुझमें नहीं
मुझे हक सही से जताना भी नहीं आता !!
नमिता गुप्ता “मनसी”
उत्तर प्रदेश , मेरठ