हर बार मेरा “आंचल” तुम बनों..

हूं बूंद या बदली, या चाहे पतंग 

आसमान तुम बनों !!

हूं गजल या कविता, या कोई छंद

अल्फ़ाज़ तुम बनों !!

हूं सुबह या सांझ, या रात की पहर

वक्त से साथ तुम रहो !!

हूं धुंध या कुहासा, या ओस सुबह की

आफताब तुम बनों !!

हूं धारा या नदी, या कोई लहर

किनारा तुम बनों !!

हूं दर्द या आंसू, या कोई भी गम

सहारा तुम बनों !!

हूं पौष या आषाढ़, या कोई भी माह

“सावन” तुम बनों !!

हूं मेंहदी या सिंदूर, या बिंदिया कोई

हां, हर बार मेरा आंचल तुम बनों !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

मेरठ , उत्तर प्रदेश