हां एक और चाहिए 15 अगस्त आजादी के सालों बाद।
उन गोरों से आजाद होकर भी क्या पूर्ण आजादी है अपने पास।।
लूट मचा है सत्ता का भेड़ियों का है फौज तैयार।
देश लूटने के जुगाड में जोड़ रहा कुनवों को साथ ।।
डूबा पड़ा है भ्रष्टाचार की नाली फिर भी बताता ईमानदार।
कोई बना रहा शीश महल तो कोई खड़ा कर रहा साम्राज्य।।
क्या सच में हम आजाद हो पाए बहसी और दरिंदों से?
लूट खसोट और अत्याचार से क्या बच पाए उन भेड़ियों से???
नोच नोच अब वो खाता है अपनों का हीं रुधिर मांस।
दोधारी तलवार चलाकर काटता है अपनों का स्वास।।
एक आजादी का बिगुल बजे अब जन जन में हो क्रांति का आगाज।
मुख पर परे मुखोटों को खींच कर अब निकालने की हो बात।।
उस क्रांति के मशाल में फिर जल जायेगा जंगल राज।
गोरों के हीं जैसे इनका मिट जायेगा काला साम्राज्य।।
आजाद भारत में फिर से हीं नव प्रभात का होगा आगाज ।
फिर हर दिन होगा 15 अगस्त और पूर्ण आजादी की होगी बात।।।
श्री कमलेश झा भागलपुर