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उम्मीद मैने भी की
पर तोड़ दी गयी
कभी थामा गया
तो कभी छोड़ दी गयी
फिर भी मरते मेरे अरमान नहीं है
औरत होना कोई गुनाह नहीं है
नोचे पंख तुमने
फिर भी उड़ती हूँ
जुल्मो से तेरी
अब मैं कहाँ डरती हूँ
रोके मुझे ऐसा कोई आसमान नहीं है
औरत होना कोई गुनाह नहीं है
हर रास्ते पर
साथ चल सकती हूँ
जो करते हो तुम
वह मैं भी कर सकती हूँ
मेरे सपनो को क्यों, कहीं पनाह नहीं है
औरत होना कोई गुनाह नहीं है
कब तक
भेद भाव सहूंगी मैं
ज़ुबान होते भी
कव तक चुप रहूँगी मैं
हाशिये पर रहना मुझे बर्दास्त नहीं है
औरत होना कोई गुनाह नहीं है
आवाज मैं देती हूँ
तुम साथ आओ
रोक रखें हैं जो कदम
उसे आगे बढ़ाओ
जानती हूँ मैं ,राह अपनी आसान नहीं है
औरत होना कोई गुनाह नहीं है
*रचना श्रीवास्तव
केलिफोर्निया