नई दिल्ली । कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का दावा करने वालों के लिए ये खबर चिंताजनक हो सकती है। ये वही कांग्रेस है जिसने लोकसभा चुनाव में अपने होने का अहसास करा दिया। अब कांग्रेस विभिन्न राज्यों में होने जा रहे विधानसभा और 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाने में लगी हुई है। कुछ इसी तरह की रणनीति का हिस्सा प्रियंका गांधी को वायनाड से चुनाव लड़ाना है। इसके पीछे दो अहम कारण हैं। राहुल गांधी अगर रायबरेली सीट छोड़ते तो अभी उस राज्य से बेहतर संदेश नहीं जाता जहां से पार्टी ने अभी तुरंत बेहतर प्रदर्शन किया। साथ ही पार्टी उस राज्य को नहीं छोड़ना चाहती थी जहां 2019 और 2024 दोनों जगह पार्टी को लोगों का सपोर्ट मिला। पार्टी को लगता है कि वहां अगले दो साल में होने वाली विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। साथ ही दक्षिण हाल में कांग्रेस का मजबूत गढ़ साबित हुआ है। यही कारण है कि राहुल गांधी के सीट छोड़ने के बाद पार्टी के पास गांधी परिवार से ही कोई उम्मीदवार देना कहीं न कहीं राजनीतिक विकल्प ही राजनीतिक मजबूरी भी थी।
हालांकि 2022 में प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में पार्टी की जिम्मेदारी मिली थी तो लेकिन तब पार्टी कुछ खास नहीं कर पायी थी। लेकिन पार्टी ने कहा कि उस चुनाव में की गयी जमीनी तैयारी का लाभ अब मिल रहा है। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि- पार्टी जो भी भूमिका मेरे लिए तय करेगी मैं उसे पूरी लगन से निभाऊंगी। इससे संकेत गया था कि वह चुनावी राजनीति में भी उतरने के लिए तैयार है। सूत्रों के अनुसार प्रियंका गांधी अगर वायनाड से जीतती है तो अभी पार्टी में उनके लिए अहम जिम्मेदारी भी इंतजार कर रही है। सूत्रों के अनुसार पार्टी के अंदर उन्हें संगठन और चुनावी मैनेजमेंट से जुड़ी अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसका संकेत पार्टी के शीर्ष नेताओं को मिल भी चुका है।सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी अब खासकर हिंदी बेल्ट में पार्टी को मजबूत करने उतरेंगे। इसके लिए उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार,मध्य प्रदेश,उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों पर वे फोकस करेंगे। पार्टी को लगता है कि 2029 में अगर कांग्रेस को और बेहतर प्रदर्शन करना है तो यहां अपनी सीटें और बढ़ानी होगी। साथ ही दक्षिण में किला बचाकर रखना होगा। ऐसे में मुमकिन है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों खास रणनीति पर काम करे। वहीं प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में इतने देर से उतरने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। लेकिन पार्टी सूत्रों के अनुसार यह फैसला सिर्फ गांधी परिवार को लेना था। यह भी कहा गश कि प्रियंका के पति राबर्ट वाड्रा पर करप्शन के आरोप लगते रहे इसीलिए प्रियंका गांधी ने हड़बड़ी में चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं जतायी।
बीते सालों से कांग्रेस में महासचिव के रूप में काम कर रही प्रियंका गांधी पार्टी की स्टार प्रचारक बनी है। चुनावों में उनकी सभाओं की मांग राज्यों में तेजी से बढ़ने लगी है। तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में आक्रामक प्रचार का लाभ कांग्रेस को मिल। तभी से पार्टी ने माना कि न सिर्फ प्रियंका गांधी आम लोगों से कनेक्ट कर रही है बल्कि उनके प्रचार का लाभ यह होता है कि वह महिला वोटरों से बेहतर तरीके से संवाद कर लेती है। पार्टी को लगता है कि महिलाओं को लुभाने के लिए महिला के रूप में प्रियंका गांधी अधिक प्रभावी हो रही है। प्रियंका स्वाभाविक तौर पर बेहतर वक्ता हैं। साथ ही पिछले कुछ सालों में प्रियंका गांधी पार्ठी के अंदर क्राइसिस मैनेजमेंट को संभालने वाली भी बनी। कई मौकों पर उन्होंने हस्तक्षेप कर चीजों को ठीक किया। लेकिन इसके बावजूद उनका चुनावी राजनीति से दूर रहना कई सवाल उठाते थे। प्रियंका गांधी का चुनावी राजनीति में उतरने का औपचारिक एलान हो ही गया। पिछले दस सालों से कांग्रेस के अंदर जिस बात के लिए सबसे अधिक इंतजार था,सोमवार को उसका औपचारिक एलान कांग्रेस के अंदर हो गया। लेकिन इसमें थोड़ा टि्वस्ट था। वह दक्षिण से चुनावी आगाज करेगी। दरअसल यह पार्टी की समझी रणनीति के तहत लिया गया फैसला माना जा रहा है। पार्टी के सीनियर नेता ने कहा कि जब राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन किया था तभी तय हो गया था कि अगर राहुल गांधी दोनों सीट से जीतते हैं तो प्रियंका वायनाड से लड़ेगी।