भारतीय संविधान- विषय पर श्रीमती सीतादेवी शर्मा स्मृति व्याख्यान सम्पन्न, विश्लेषकों लेखकों ने रखे विचार, कहा जिस तरह का लोक होता है, उसे वैसी ही सरकार प्राप्त होती है

इन्दौर संस्था मुक्तांगन और स्टेट प्रेस क्लब मध्यप्रदेश द्वारा रविवार को अभिनव कला समाज में श्रीमती सीतादेवी शर्मा की स्मृति में भारतीय संविधान विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आरंभ अभिषेक, दुर्गेश, रिजवाना, माया, काजल ने जनगीत के साथ किया। ततपश्चात संविधान की उद्देशिका का पाठ नेहा दुबे ने किया। डॉ. कामना शर्मा ने श्रीमती सीतादेवी शर्मा के जीवनवृत को उपस्थितों के सम्मुख रखा।
व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में विकास संवाद के निदेशक, संविधान अध्येता, विश्लेषक, लेखक व विचारक सचिन कुमार जैन ने ‘भारतीय संविधान की भारतीयता’ विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए संविधान की रचना के पूर्व से लेकर वर्तमान और भविष्य तक को अलग-अलग उदाहरणों व तथ्यों के साथ पारिभाषित किया। उन्हें कहा कि समाज के प्रत्येक वर्ग के शास्त्रों और धर्मग्रंथों को आज भी आज के दौर के हिसाब से प्रस्तुत किया जा रहा है। सालों बाद रामचरित मानस की समाज के अलग-अलग वर्गों के लोगों को समझाने के लिए अलग-अलग व्याख्याएं सामने आती है लेकिन ऐसा संविधान के साथ नहीं हुआ है। यह समाज के लिए सरल नहीं है। लोक जिस तरह की सरकार के उपयुक्त होता है, वैसी ही सरकार उसे प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि समय-समय पर प्रचलित कुरीतियों को खत्म करने के लिए लोगों ने आवाज उठाई और उस हिसाब से उसके खिलाफ नियम-कायदे बने। भारतीय संविधान कितना भारतीय है, इसके सामाजिक और राजनैतिक दोनों पहलू है। संविधान में 65 प्रतिशत तक हिस्सा 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट से लिया गया है लेकिन 1935 के कानून में कई मूलभूत अधिकार नहीं थे, जो आज के संविधान में शामिल है।
व्याख्यान में लेखक व विचारक डॉ. अमिता नीरव ने ‘स्त्री अधिकार और भारतीय संविधान नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ विषय पर अपने विचार रखते हुए सवाल उठाया कि संविधान लागू होने के सालों के बाद भी समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार क्यों नहीं आया? उन्होंने कहा कि व्यवस्थाएं मर्दों ने मर्दों के लिए बनाई है, स्त्रियां तो घुसपैठियां है। घरेलू हिंसा से लेकर कोर्ट में चलने वाले तलाक के मामलों तक में महिलाओं के साथ सहानुभूति का रवैया नहीं होने की बात उठाते हुए उन्होंने महिलाओं को भी अपने कम्फर्ट जोन में रहने के कारण आवाज नहीं उठाने का दोषी बताया।
विषय प्रवर्तन करते हुए रिपुसूदन शर्मा ने बताया कि हमारे धर्मग्रंथों के साथ ही हमारे संविधान को भी जानना जरूरी है। संविधान में कोई धारा नहीं है बल्कि अनुच्छेद है। भाग तीन में मूल अधिकार उपलब्ध है। अधिकार की बात सब करते है लेकिन लोगों को दायित्व को भी उठाना होगा। हमारी संवैधानिक व्यवस्था लचर हो रही है, इसे पटरी पर लाना होगा।
व्याख्यान में अनिल त्रिवेदी, अजीज इरफान, अरविंद पोरवाल, अशोक दुबे, शफी शेख, सूफिया गौरी, प्रदीप मिश्र, पायस लाकरा, कमल हेतावल सहित अनेक गणमान्य नागरिक सम्मिलित हुए। संस्था की संयोजक डॉ. शोभना जोशी ने कार्यक्रम का संचालन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्टेट प्रेस क्लब मध्यप्रदेश के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने की। कार्यक्रम की समन्वयक डॉ. कामना शर्मा व सारिका श्रीवास्तव थी। अंत में आभार जयश्री पुरोहित ने व्यक्त किया ।