ओ नए साल के वसंत !
बढ़ कर मेरा हाथ थाम ले
मैं गुज़रे साल का पतझड़ हूँ
मेरे मुरझाये फूलों की गंध से ही
खिलती हैं तुम्हारी कलियाँ
और तुम्हारे फूल
बिखेरते हैं ख़ुश्बू
आने वाली सदियों के नाम ,
सूरज की पहली किरण के साथ
रौशनी का पर्व मनाते
ओ नए साल के वसंत !
बढ़ कर मेरा हाथ थाम ले
मैं गुज़रे साल का पतझड़ हूँ
मेरे भीतर से ही फूटती है
तुम्हारे वसंत की यह रौशनी
जिसकी किरणों में स्नान कर
हम मिलजुल कर रचेंगे महारास
जिसे देखने ये ब्रह्माण्ड भी थम जायेगा
रौशनी का हर क़तरा प्रेम के गीत गायेगा
ओ नए साल के वसंत !
बढ़ कर मेरा हाथ थाम ले
मैं कब से प्रतीक्षारत हूँ
तुम्हारे आगमन के लिए
मेरी फैली हुई आतुर बाँहों में
सदा के लिए क़ैद हो जाओ
आने वाली सादिया भी गायेंगी
हमारे महामिलन का अनंत तराना
याद है आज भी तेरा मुस्कुराना
ओ नए साल के वसंत !
बढ़ कर मेरा हाथ थाम ले
मैं गुज़रे साल का पतझड़ हूँ।
इन्दुकांत आंगिरस
# 9900297891