इन्दौर । भारत भूमि में रामराज्य की कल्पना तभी साकार हो सकती है, जब राम जैसे राजा के साथ हनुमान जैसे चैतन्य, ऊर्जावान, समर्पित और सूझबूझ वाले सेवक होंगे। हमारे देश का युवा जब तक हनुमान की तरह बलशाली, चैतनाशील और बुद्धिमान नहीं होगा, तब तक रामराज्य की बात कथा- कहानी में ही सीमित रह जाएगी। जब तक हनुमान नहीं आएंगे, तब तक रामराज्य की संकल्पना भी पूरी नहीं हो पाएगी। यह सनातन धर्म की भूमि है। सनातन धर्म के साथ हमारे संस्कार, हमारी संस्कृति और ऐसे गुण जुड़े हुए हैं, जो पूरी दुनिया में कहीं और नहीं मिल सकते।
ये प्रेरक विचार हैं राष्ट्रकवि और सरस्वती पुत्र पं.सत्यनारायण सत्तन के, जो उन्होंने बुधवार को पंचकुइया स्थित दास बगीची पर श्री दास हनुमान जय सियाराम बाबा धार्मिक ट्रस्ट, हम्माल कालोनी युवा संगठन एवं नवग्रह शनिधाम के तत्वावधान में चल रहे श्रीराम हनुमान चरित्र महोत्सव के दौरान व्यक्त किए। पं. सत्तन ने कहा कि राजा दशरथ द्वारा पुत्र कामेष्टि यज्ञ, श्रवण कुमार के माता-पिता के श्राप एवं हनुमानजी की सेवाभावना के विभिन्न प्रसंगों का अपने अनूठे अंदाज में वर्णन किया। ग्रीष्मकाल को देखते हुए अब दास बगीची पर कथा का समय प्रतिदिन सांय 6 से 8 बजे तक कर दिया गया है। कथा शुभारंभ के पहले पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता, संयोजक धर्मेश यादव, सचिन, सांखला, भावेश दवे, ऋषि नामदेव, योगेश रायकवार, मंगल राठौर, पंकज ठाकुर, अंकित यादव, मोनू पांचाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। पं. सत्तन के साहित्यिक क्षेत्र के शिष्यों, गिरेन्द्रसिंह भदौरिया, सुरेखा भारती, योगेन्द्र नाथ शुक्ल आदि ने भी व्यासपीठ एवं राष्ट्रकवि का सम्मान किया। श्री राम हनुमत चरित्र महोत्सव का यह आयोजन 29 मार्च तक प्रतिदिन सांय 6 से 8 बजे तक दास बगीची परिसर में जारी रहेगा। कथा स्थल पर भक्तों की सुविधा के लिए पांडाल, छाया, रोशनी, पेयजल, निशुल्क पार्किंग आदि के समुचित प्रबंध किए गए हैं।
मनोहारी भजन संकीर्तन श्री राम जय राम जय-जयराम के साथ अपनी कथा विषय का शुभारंभ करते हुए पं. सत्तन ने कहा कि संतान दो तरह की होती है। एक तपजन्य और दूसरी कामजन्य। हमारे जितने भी देवी-देवता हुए हैं, वे सब तपजन्य संतान है। तपजन्य संतान ही श्राप को वरदान में बदल सकती है। यह उनके पुण्यों और तप का प्रभाव होता है कि वे अपने कर्मों से स्वयं का ही नहीं पूरे परिवार और समाज का भी कल्याण कर सकते हैं। हनुमान अदभुत बलशाली तो हैं ही बुद्धिमता में भी उनका कोई मुकाबला नहीं। प्रभु श्रीराम तो सदैव से मर्यादा पुरुषोत्तम बने हुए हैं। उन्होंने अपने वचन का कभी भी, कहीं भी उल्लंघन नहीं किया। उनके चरित्र और व्यवहार में कहीं कोई दोष नहीं है, इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। मनुष्य चाहे तो अपने कर्मों को सुधारकर, संवारकर स्वयं भी भगवान बन सकता है, भगवान चाहे तो मनुष्य नहीं बन सकता। यह मनुष्य जन्म बहुत दुर्लभ और अनेक पुण्यों के पश्चात प्राप्त हुआ है, इसलिए इसका उपयोग सदकर्मों में ही होना चाहिए।