वक्फ संशोधन बिल को लेकर एनडीए के सहयोगी दलों में फूट

-नवीन पटनायक की पार्टी में रार, सांसद पात्रा पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग
नई दिल्ली । वक्फ संशोधन बिल पर राज्यसभा में हुई वोटिंग के बाद एनडीए की सहयोगी पार्टी बीजेडी में भी अंदरूनी कलह तेज़ हो गई है। बिहार में जेडीयू में पैदा हुए घमासान के बाद अब ओडिशा की सत्ताधारी बीजेडी में भी बवाल मचता दिख है। पार्टी के वरिष्ठ नेता इस मामले को लेकर सार्वजनिक रूप से बगावत पर उतर आए हैं।
जहां एक तरफ पार्टी के एक मात्र मुस्लिम सांसद मुजिबुल्ला खान ने वक्फ संशोधन बिल का विरोध किया, वहीं पार्टी के राज्यसभा फ्लोर लीडर सस्मित पात्रा ने वोटिंग से पहले यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि बीजेडी सांसद अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर मतदान कर सकते हैं। विवाद इसलिए भी अहम है क्योंकि यह बयान उस समय आया, जबकि पार्टी पहले ही कह चुकी थी कि वह वक्फ संशोधन बिल का विरोध करेगी। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए बीजेडी के पूर्व मंत्री प्रताप जेना ने पार्टी अध्यक्ष नवीन पटनायक को पत्र लिखकर सांसद सस्मित पात्रा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की है। जेना ने आरोप लगाया कि आखिरी क्षण में पार्टी के स्टैंड में बदलाव कोई सामान्य बात नहीं, बल्कि एक साजिश थी।
प्रफुल्ल समल और सांसद समंतराय भी नाराज़
बीजेडी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल समल ने भी सस्मित के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। वहीं राज्यसभा सांसद देबाशीष समंतराय ने पार्टी के सलाहकारों पर सवाल उठाते हुए कहा, कि नवीन पटनायक ने दो बार स्पष्ट किया था कि पार्टी बिल का विरोध करेगी, लेकिन अंतिम क्षण में निर्णय बदलना पार्टी हित में नहीं था।
क्या भाजपा के खेल में फंस गई बीजेडी?
इस मामले में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा ने विपक्षी दलों की एकजुटता को तोड़ने के लिए रणनीतिक रूप से यह विधेयक पेश किया। जेडीयू और बीजेडी जैसी धर्मनिरपेक्ष छवि वाली पार्टियों के लिए यह बिल एक अग्निपरीक्षा बन गया, और फिलहाल वे इससे निपटने में असहज नजर आ रही हैं। दरअसल ये सभी दल भाजपा की चाल में फंस चुके हैं, जिसका खामियाजा इन्हें चुनाव के दौरान भुगतना भी पड़ सकता है।
धर्मनिरपेक्ष छवि को पहुंचा नुकसान
बीजेडी लंबे समय से धर्मनिरपेक्ष और अल्पसंख्यक समर्थक पार्टी के रूप में अपनी पहचान बनाए हुए थी। लेकिन इस बिल पर समर्थन या चुप्पी ने पार्टी की इस छवि को झटका दिया है। इससे आगामी चुनावों में अल्पसंख्यक मतदाताओं का रुख प्रभावित हो सकता है।