हर-हर महादेव के जयघोष के साथ शिवमहापुराण कथा सम्पन्न

::आचार्य राकेश कृष्ण शर्मा की ओजस्वी वाणी से जागृत हुआ आत्मिक आलोक, भजनों की तरंगों पर झूमे श्रद्धालु, विशाल भंडारे में हजारों ने पाया पुण्यप्रसाद::
इन्दौर | खंडवा रोड स्थित तेजाजी नगर के अनुराधा नगर में स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर परिसर में आयोजित श्री हाटकेश्वर शिव महापुराण कथा का सात दिवसीय आयोजन भक्तिभाव की ऊँचाइयों को छूते हुए सैकड़ों श्रद्धालुओं की आंखों में आस्था की अश्रुधारा और हृदयों में शिवत्व की ज्योति जलाकर संपन्न हुआ।
इस दिव्य आयोजन की पृष्ठभूमि श्री हाटकेश्वर पापमोचनी नवदुर्गा एवं श्री राघवेंद्र सरकार द्वितीय प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव रही, जिसे गंगा गीता गायत्री गौ द्विज संरक्षण सेवा समिति, विरगोदा की सक्रिय सहभागिता ने आत्मा के स्तर पर छू लेने वाला बना दिया।
कथा व्यास आचार्य श्री राकेश कृष्ण शर्मा जी ने सात दिनों तक अपने ओजस्वी वाणी में पुराण की पवित्र कथाओं को इस प्रकार उकेरा मानो भगवान शिव स्वयं पांडाल में विराजित होकर प्रसंगों का स्मरण करा रहे हों। कथा की हर संध्या एक नई दिव्यता से भरपूर रही—कभी सती-शिव विवाह का करुणामयी प्रसंग, तो कभी पार्वती की तपस्या और शिव-विवाह की भक्ति-गाथा, कहीं अमरनाथ गुफा में अमरत्व का रहस्य, तो कहीं द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा।
कथा में जब रावण द्वारा कैलाश उठाने और शिव तांडव स्तोत्र की उत्पत्ति का प्रसंग प्रस्तुत हुआ, तो पंडाल में बैठे श्रद्धालु जय शिव शंकर के जयघोष में खो गए। कथा के दौरान भजनों पर झूमते श्रद्धालुओं का दृश्य ऐसा था मानो कैलाश स्वयं धरा पर अवतरित हो गया हो। सेवा, संयम और समर्पण की त्रिवेणी पूरे आयोजन में प्रतिदिन गोमती चक्र और रुद्राक्ष का वितरण किया गया, जिसे श्रद्धालुओं ने श्रद्धा सहित धारण किया। सेवा समिति ने भोजन, जलपान, पंडाल व्यवस्था, सुरक्षा एवं सफाई में अनुकरणीय समर्पण दिखाया। हर सेवा कार्य शिव भक्ति का ही एक रूप प्रतीत हो रहा था। कथा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं का अपार सैलाब उमड़ पड़ा। हर चेहरा शिवमय, हर हृदय भावमय और हर आंख नम दिखाई दी। विशाल भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने पंक्तिबद्ध होकर अत्यंत श्रद्धा के साथ प्रसादी ग्रहण की। यह दृश्य किसी महाकुंभ के पुण्य क्षणों की अनुभूति करा रहा था। कई श्रद्धालु अपनी आंखों में आँसू लिए व्यासपीठ की ओर निहारते रहे, जैसे कहना चाह रहे हों, हे नीलकंठ! यह कथा कभी न रुके, यह शिवत्व हमारी सांसों में स्थायी हो जाए। एक आध्यात्मिक यज्ञ का पूर्णाहुति यह आयोजन केवल धर्म का नहीं, आत्मा के जागरण का एक विराट पर्व सिद्ध हुआ। इस कथा में जहां भक्तों ने शिव को जाना, वहीं समाज ने सेवा, संस्कार और एकता का अनुपम उदाहरण भी देखा।