आतंक को पालने वाला पाकिस्तान….कैसे बन गया एससीओ-आरएटीएस मंच का अध्यक्ष

नई दिल्ली । वैश्विक राजनीति के दोहरे मापदंडों का सबसे बड़ा उदाहरण पाकिस्तान है। कभी एफएटीएफ की ग्रे सूची में आतंकियों को फंडिंग करने वाले देश के रूप में बदनाम हुआ पाकिस्तान आज एससीओ-आरएटीएस (रीजनल एंटी-टेररिस्ट स्ट्रक्चर) जैसे मंच का अध्यक्ष बन गया है, वह मंच, जिसका मकसद आतंकवाद से लड़ना है।
साल 2018 से 2022 तक पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में रहा। उसके बैंकों और मदरसों से आतंकी संगठनों को मदद मिलती रही। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो तक कह चुके थे कि पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देता है। लेकिन फिर भी पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया। वजह साफ थी अमेरिका को अफगानिस्तान से सेना निकालने में पाकिस्तान की जरूरत थी और चीन हर बार तकनीकी सुधार का हवाला देकर आंतकी मुल्क पाकिस्तान को बचाता रहा।
2022 में पाकिस्तान ग्रे लिस्ट से बाहर आया और अब 2025 में एससीओ-आरएटीएस का अध्यक्ष बन गया। इससे मंच की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होना लाजिमी है।
अमेरिका जानता है कि पाकिस्तानी ठिकानों से तालिबान ने उसकी सेना पर हमले किए। फिर भी पाकिस्तान को ‘मेजर नॉन-नाटो एलाय’ बनाए रखा और अरबों डॉलर की मदद दी। चीन ने भी बार-बार संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव रोके, क्योंकि ये संगठन भारत को निशाना बनाते हैं, चीन को नहीं।
पाकिस्तान की सबसे बड़ी चालाकी यह है कि वह आतंकियों को दो हिस्सों में बांटता है। जो भारत पर हमला करते हैं, वे उसके लिए ‘अच्छे आतंकी’ हैं। और जो पाकिस्तान के भीतर खून-खराबा करते हैं, वे ‘बुरे आतंकी’। अफगान तालिबान की वापसी के बाद जब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने देश के अंदर हमले बढ़ाए, तभी पाकिस्तान ने खुद को ‘आतंक पीड़ित’ बताने का नैरेटिव तेज किया। जबकि भारत लंबे समय से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का शिकार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि जो आतंकियों को पनाह देते हैं, वे खुद भी सुरक्षित नहीं रहने वाले है। लेकिन पश्चिमी दुनिया पाकिस्तान की ‘पीड़ित’ छवि पर ज्यादा भरोसा करती है।