एक ही प्लेटफार्म होने से एयरलाइन की बाजार में पहुंच घटेगी, बुकिंग का नुकसान होगा।
इंदौर,ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के इंदौर चैप्टर ने एयर इंडिया के बुकिंग एवं वितरण सिस्टम के फैसले के विरोध प्रदर्शन किया। वो नेशनल कैरियर एयर इंडिया द्वारा एकतरफा निर्णय द्वारा अपने बुकिंग एवं वितरण सिस्टम के बदले जाने का विरोध कर रहे थे। यह विरोध प्रदर्शन क्रॉसिंग से अभय खेल प्रशाल भवन, रेस कोर्स रोड, जंजीरवाला चौराहा, 11 बंगला कॉलोनी, न्यू पलासिया, इंदौर स्थित एयर इंडिया के कार्यालय के सामने किया गया और इसमें 40 आईएटीए टीएएआई सदस्यों एवं नॉन-आईएटीए सदस्यों ने हिस्सा लिया।
एयर इंडिया हर बार गलत कारणों से सुर्खियों में रहता है। नशे में धुत पायलट द्वारा क्षतिग्रस्त जहाज उड़ाने से लेकर पायलट व क्रू के बीच विवाद तक इनका कोई अंत नहीं। सरकार द्वारा इसका प्रबंधन दयनीय स्थिति में है। ऐसा नहीं कि सरकार इसे ठीक नहीं कर सकती, जैसा उसने सत्यम और आईएलएंडएफएस के मामले में किया। लेकिन इस मामले में व्यवस्था ठीक करने के प्रति इच्छाशक्ति और मंशा की कमी है। इस सिलसिले में बहुत बड़ी गलती एकाधिकार स्थापित कर सेल्स व मार्केटिंग के अपने बिज़नेस से खिलवाड़ है, क्योंकि यह केवल एक ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन पार्टनर (जीडीएस) से गठजोड़ करने की ओर बढ़ रहा है। वर्तमान में तीन प्रमुख जीडीएस सिस्टम्स हैं और वैश्विक बाजार में उनकी हिस्सेदारी है:
वैश्विक इंडिया
एमेडियस 43% 55%
ट्रैवलपोर्ट 20% 30%
सब्रे 39% 12%
अभी वैश्विक स्तर पर सबसे मशहूर जीडीएस सिस्टम्स एमेडियस, सब्रे और ट्रैवलपोर्ट हैं। सभी प्रमुख एयरलाइंस कई जीडीएस से जुड़े होने जरूरी हैं, क्योंकि यदि वो केवल एक जीडीएस के साथ है, तो अन्य के साथ वो स्वतः ब्लॉक हो जाते हैं। अन्य फुल-सर्विस एयरलाइंस की तरह एयर इंडिया भी अब तक कई जीडीएस सिस्टम्स का उपयोग कर रही थी। ऐसा करना इस एयरलाइन के लिए फायदेमंद था और दुनिया भर की एयरलाइंस ऐसा ही कर रही हैं। यह समय के साथ परखा भी जा चुका है। लेकिन एयर इंडिया ने केवल एक जीडीएस को छोड़कर अन्य सभी से अलग होने का निर्णय लिया है। एयर इंडिया ने ट्रैवलपोर्ट को अपना एक्सक्लुसिव जीडीएस बनाने का फैसला किया है और अन्य सिस्टम्स से यह अलग हो रही है। इसका मतलब है कि यदि किसी ट्रैवल एजेंट को एयरइंडिया का टिकट बुक करना है तो उसे ट्रैवलपोर्ट जीडीएस के माध्यम से आना होगा।’’
एयर इंडिया ने केवल एक जीडीएस का निर्णय क्यों किया? एयर इंडिया प्रबंधन का तर्क यह है कि इस डील से उसकी डिस्ट्रीब्यूशन लागत में लगभग 60 फीसद तक की कमी आ जाएगी। एलसीसी से अलग, फुल सर्विस एयरलाइंस जैसे एयर इंडिया, जेट एयरवेज को घरेलू और वैश्विक बाजार में अपने टिकटों की बिक्री के लिए एमेडियस, ट्रैवलपोर्ट और सबरे जैसे जीडीएस का सहारा लेना पड़ता है। जीडीएस प्रदाता प्रत्येक बुकिंग पर शुल्क का एक हिस्सा लेता है और एक हिस्सा ट्रैवल एजेंट को देता है। जीडीएस को केवल एक प्रदाता तक सीमित करने से लागत तो कम हो जाएगी, लेकिन इससे मिलने वाले मुसाफिर भी केवल एस खास जीडीएस तक सीमित हो जाएंगे। दुर्भाग्यवश ट्रैवलपोर्ट के पास केवल 20 फीसद वैश्विक बाजार और 30 फीसद घरेलू बाजार है। इसलिए दोबारा नई शुरुआत करने की एयर इंडिया की योजना पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस नीति के लिए इंग्लिश में एक उपयुक्त मुहावरा – ए पाउंड फुलिश-पेनी वाइज पॉलिसी है, जिसका मतलब है – छोटा सा फायदा पाने के लिए बड़ी संभावनाओं को नजरंदाज करना। यह नीति तभी अपनाई जा सकती है, जब इसमें किसी बाहरी तत्व का स्वार्थ छिपा हो।
एयर इंडिया द्वारा केवल एक ही ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन प्लेटफार्म से जुड़ने का इसके पूर्व चेयरमैन व प्रबंध निदेशक, राजीव बंसल और वाणिज्यिक निदेशक, पंकज श्रीवास्तव ने विरोध किया था। यह विरोध इस आधार पर किया गया था कि एक ही प्लेटफार्म होने से एयरलाइन की बाजार में पहुंच घटेगी, जिससे बुकिंग का नुकसान होगा।
हालांकि ट्रेवलिंग एजेंट्स की लॉबी, ट्रेवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (टीएएआई) ने एयर इंडिया के एक ही जीडीएस प्रोवाइडर से जुड़ने के निर्णय का विरोध किया है क्योंकि इससे उनके राजस्व पर असर पड़ेगा। ओवरसीज़ ट्रैवल्स के हेमंद्र सिंह जाडोन ने कहा, “एजेंट्स सर्विस प्रोवाइडर से इंसेंटिव लेते हैं और एयरलाईन के इस निर्णय का उन पर अत्यधिक प्रतिकूल असर पड़ेगा। इससे 18 कोडशेयर पार्टनर और 100 इंटर लाइन पार्टनर डिस्कनेक्ट हो जाएंगे। इससे स्टार एलायंस पार्टनर्स से कारोबार में घाटा होगा, जिसकी सदस्यता एयर इंडिया को काफी मुश्किल से मिली थी। इसके अलावा, एयर इंडिया बड़े स्तर के ग्लोबल ऑनलाइन पार्टनर जैसे एक्सपीडिया, ओडिजियो, इजेंसिया आदि से अलग-थलग हो जाएगा, क्योंकि वे ट्रैवलपोर्ट के साथ काम नहीं करते। यह भी गौरतलब है कि जीडीएस कंपनियों ने एयरइंडिया द्वारा यह एक्सक्लुसिविटी न चुनने के लिए कम लागत के साथ वैकल्पिक नीतियां दीं थीं।’’
इस बारे में एक रोचक तथ्य यह उजागर हुआ है कि भारत में ट्रैवलपोर्ट का नियंत्रण इंटरग्लोब ग्रुप के पास है, जो एयरइंडिया के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी, इंडिगो एयरलाइंस का मालिक है। इसलिए अब एयर इंडिया की संपूर्ण इन्वेंटरी के आंकड़े उन्हें भी उपलब्ध हो जाएंगे। इसलिए यहां केवल एक दूसरे के हित ही नहीं टकरा रहे हैं बल्कि एयर इंडिया के तेजी से विकसित होते प्रतिद्वंद्वी को डेटा भी लीक होने की संभावना है।
लिहाजा एयर इंडिया के इस निर्णय से इसके पुनरोद्धार में एक बड़ झटका लगेगा। यूपीए सरकार में एयर इंडिया के महत्वपूर्ण और महंगे लैंडिंग स्लॉट्स प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को दिए गए थे। ठीक वही कहानी आज फिर से होने जा रही है और प्रतिद्वंद्वी कंपनी को हमारे आंकड़े और मार्केट कैचमेंट एरिया दिया जा रहा है।