भीकनगांव(मुकेश राठौड़):- ”कौन कहता है आसमां में सुराख नही हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारो।“ कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियो को गर कोई चुनौती मान लक्ष्य केन्द्रीत करले तो फिर शुन्य के शिखर तक सफर सहज तय हो जाता है। ठेठ आदिवासी अंचल भीकनगांव के एक युवा जिसने गरीबी और मजबुरीयो के बीच कब बचपन में शुन्य से शिखर पर पहुचने का सपना बुना, वह भी तमाम परिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के साथ – साथ, दिलचस्प व रोमांचित कर देने वाली कहानी है। बात हो रही है हाल में अधिमान्यता प्राप्त युवा पत्रकार अर्पित जायसवाल की जिन्होने भीकनगांव क्षेत्र में पत्रकारिता जगत में न सिर्फ अधिमान्यता की सनद ली बल्कि अपनी धारदार लेखनी से अलग पहचान स्थातिप की है। पच्चीस वर्षीय युवा पत्रकार की राह इतनी आसान नही थी। अर्पित जब महज दो वर्ष का था, पिताश्री रमेशचंद जी जायसवाल का निधन हो गया, न परिवार का साथ और न ही किसी तरह की पुश्तैनी संपत्ति, ननिहाल भी मीलो दूर महाराष्ट्र के अमरावति जिल्हा के धुलघाट धारणी में अर्पित की मॉ राधा बाई ने तमाम प्रतिकुल परिस्थितियों के बीच दो छोटे – छोटे बेटों के सहारे फिर से जीना शुरू किया लोगो के यहां मेहनत मजदुरी कर बेटों को स्कुलो में दाखिल करवाया और उनकी पढाई लिखाई सुनिश्चित करने की योजना बनाई।
प्रांरभिक शिक्षा के साथ अर्पित का संघर्ष भी शुरू हुआ, जो आज की बेरोजगार युवा पीढी के लिए मिसाल है। खेलने कुदने की उम्र में जब पॉच से छः साल के बच्चे अपनी मॉ से रूपये दो रूपये लेकर गली – मोहल्ले में आये फेरीवाले/डब्बेवाले से चने-फुटाने, बोर, कुल्फी और गुड्डी के बाल खाने की जिद करते है, अर्पित ने इसके उलट इन कामों से चिल्लर इकठ्ठा कर मॉ को घर चलाने में अपनी भुमिका तय की और अपनी पढाई को भी जारी रखा। गली – गली सायकिल से बोर/कुल्फी बेचते – बेचते कब अर्पित बालक से किशोर और किशोर से युवावस्था की दहलीज पर पहुॅच गया, पता नही चला। साल 2011 जब अर्पित अपनी स्कुली शिक्षा के अंतिम पडाव पर था, अममुन यह वह उम्र होती है जब युवा बेहतर भविष्य के सपने देखता है बल्कि यर्थात की जमीन तैयार करता है। बारहवी पढते वक्त अर्पित के मन में भी कुछ बनने का सपना पल रहा था लेकिन इस युवा ने सपना बंद नही खुली ऑखो से देखा बल्कि एक बार फिर शुन्य से शुरू बात का संकल्प लिया और नगर के पत्रकार उमाकांत शर्मा के अखबार ”इन्दौर समाचार“ को घर-घर पहुचाने के लिए ”पेपरबॉय“ बना, जो कही न कही पत्रकारिता का बीजारोपण था। अखबार बाटने का काम वर्ष 2014 तक चला और चला तो ऐसे कि नगर के सारे अखबार अर्पित के हाथों में आ गये। काम तो छोटा था लेकिन अर्पित इससे बडी संभावनाये देख रहा था। अब तो भीकनगांव के नामचीन पत्रकारों के लिए अपने अखबारे के सुचारू वितरण के लिए अर्पित ने खेमचंद जैन (बीपीएम टाइम्स), अरविंद जैन (नवभारत), विनित बार्चे (राज एक्सप्रेस), हरविंदर सिंह सलूजा (प्रदेश टुडे व हैलो हिन्दुस्तान), प्रवीण गंगराडे (6 पीएम), संजय गीते(समयजगत),शांतीलाल मुकाती(दबंग दुनिया),प्रशान्त भालसे(पत्रिका)आदि के लिए अखबार बांटे और तीन सौ संवाददाता वार लगभग डेढ हजार रूपये मासिक आय की व्यवस्था की जो उसकी महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए ठीक थी।
वर्ष 2015 में अर्पित ने स्थानीय शासकीय महाविद्यालय में समाज कार्य विषय के लिए एम.एस. डब्लू. में दाखिला लिया। उच्च शिक्षा के साथ साथ अर्पित ”राष्ट्रीय सेवा योजना“ और ”नेहरू युवा केन्द्र“ की गतिविधियो में भी सक्रियता से भाग लेने लगा। ”मॉ तुझे प्रणाम“ योजनान्तर्गत सप्ताह भर के देश भक्तिपूर्ण पर्यटन के क्रम में अर्पित को हिन्दुस्तान अंतराष्ट्रीय सीमाओं तनोत माता मंदिर लोगेंवाला सीमा (राजस्थान) व भारत – पाक सीमा वाघा बार्डर पर जाने और राष्ट्रीय विषयो को नजदीक से देखने का अवसर मिला। दुसरी और नेहरू युवा केन्द्र की गतिविधियो को लेकर गॉवो में भी स्वास्थ्य, शिक्षा व स्वच्छता का उत्साह जगाया।
एक सितम्बर 2015 वह दिन था जब अर्पित ने पत्रकारिता की दुनिया में मंगल प्रवेश किया बल्कि अपनी रूचि और सपनो के महल को खडा करने का शिलान्यास किया और भास्कर तथा नईदुनिया जैसे अखबारो के पंरपरागत पाठको के बीच ”इंदौर समाचार” जैसे अखबार की सौ प्रतियो के साथ न्युज एजेंसी ली। कहा जाता है ”समाचार पत्र प्रकाशन आसान है लेकिन उसका प्रसारण उतना ही कठिन है“ ऐसे में एक पढे लिखे युवा का सरकारी नौकरियों के पीछे न भाग, समाचार पत्र एजेंसी लेना एक साहसिक कदम था। एक बार काम हाथ में लिया तो फिर अर्पित ने पीछे मुडकर नही देखा। पत्रकारिता को लेकर इस युवा ने जनसरोकर को हमेशा उपर रखा। जब कभी भी सर्वहारा वर्ग के अधिकारो का हनन हुआ, अर्पित की लेखनी जमकर चली, बतौर अर्पित – मेरा उद्देश्य किसी का हक न मारा जाये और मेरी जानकारी में होते हुए कुछ भी गलत न हो पाये अन्यथा पत्रकार होना फिजुल है। ”इन्दौर समाचार“ अब तो नगर के घर घर में पहुचने लगा था, लोग पंसद भी करते और सबसे बडी बात अपने शहर की हर छोटी बडी बात लगातार प्रकाशित होने लगी इस नये लडके ने तो मानों कमाल ही कर दिया था। न रूतबा न वैसा रहन सहन लेकिन खबरो का स्तर किसी नामी पत्रकार से कम नही। अब अर्पित जायसवाल, भीकनगांव को लोग न सिर्फ जानने बल्कि पहचानने लगे थें। इस दौरान नगर में पहली पहल खुले ”आधार केन्द्रो“ पर हो रही धांधली को अर्पित ने प्रमुखता से उठाया, जिसका प्रतिफल यह हुआ कि लोगो को पता चला आधार निःशुल्क बनाये जाने है।
बमुश्किल 2 – 3 सालो में निष्पक्ष पत्रकारिता के उत्तम प्रतिमान स्थापित करने वाले अर्पित को अपनी सेवाओं का सम्मान मिला और जन संम्पर्क संचालनालय, म.प्र. शासन भोपाल द्वारा 29/05/2018 को तहसील स्तरीय अधिमान्यता प्राप्त ”पत्रकार“ का प्रमाण पत्र दिया, जो शायद किसी पत्रकार के लिए एक सपना सच हो जैसा है और बहुतेरो का तो इस क्षेत्र में बगैर अधिमान्यता के जीवन गुजर जाता है। हर हाल कलम का यह सिपाही, मैदान संभाले है।