अंधाधुंध औद्योगिकीकरण, खनन, वन क्षेत्रों का विनाश बना वन्य जीवों की अकाल मृत्यु का कारण

इंदौर | (शारिक खान)
इंदौर सहित धार , देवास , खरगोन, सीहोर, भोपाल और अन्य के जिलों में बिना पर्यावरण और वन्यजीवों के पर्यावास के बारे में कार्ययोजना बनाये औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण,  पहाड़ियों और घांस के मैदानों में खनन , वन भूमि का राजस्व भूमि में परिवर्तन कर व्यावसायिक कार्यो  के लिए उपयोग तथा वन भूमि पर बढ़ते  अतिक्रमणों के कारण वन्य जीव भटक कर सडकों पर आ रहे हैं और वाहनों  की टक्कर से उनकी मृत्यु हो रही है |  इंदौर के निकट पीथमपुर में वन्य जीवों के रहवास स्थल पहाड़ियों, घांस के मैदानों में औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण कर दिए जाने के कारण अनेक प्रजतिओं के छोटे बड़े वन्य जीव निजी कम्पनियों के परिसरों में बंधक बन कर रह गए है तथा कई बार वहां से निकल कर रहवासी क्षेत्रों में घुस जाते है या सड़कों पर आकर दुर्घटना का शिकार बनते है | इन वन्य जीवों का न तो कभी वन विभाग ने कोई सर्वे किया है न ही कभी उनके लिए स्थाई और सुरक्षित क्षेत्र बनाने की कोशिश की है | पीथमपुर की लगभग हर छोटी बड़ी पहाड़ी और मैदानों को बिना पर्यावरण और वन्य जीवो के बारे में सोंचे औद्योगिक क्षेत्र घोषित कर दिया गया और जो पहाड़ीया और मैदान  बच गए वो सम्बंधित विभागों की लापरवाही के चलते  खनन और अतिक्रमण का शिकार हो गए.  आज यह स्तिथि है की क्षेत्र का भूमिगत जल किसी योग्य नहीं बचा है और वन क्षेत्रो के विनाश के कारण वायु भी प्रदूषित है | ए.बी रोड के पीथमपुर से मानपुर वाले भाग से कुछ दूरी पर स्तिथ पहाड़िया भी खनन की चपेट में है और वहां के भी वन्य जीव अपनी जान बचाने के लिए इधर- उधर भटकते रहते है| यहाँ पर वन विभाग और प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका में है | मानपुर से गुजरी तक  की वन भूमि के  कुछ हिस्से अतिक्रमणों का शिकार हो रहे है |  ऐसी ही स्तिथि इंदौर-भोपाल मार्ग की भी है यहाँ पर देवास के निकट जामगोद के निकट की पहाड़िया भी खनन और अतिक्रमण की चपेट में है और यहाँ रहने वाले वन्य जीव भटक कर इस मार्ग पर आकर वाहनों का शिकार बन रहे है | सोनकच्छ के निकट दौलतपुर के आगे की पहाड़ी भी यही कहानी है |  यहाँ से कुछ आगे मेहेतवाडा क्षेत्र की बड़ी पहाड़ी और घना जंगल तो राज्य शासन ने स्वयं ही एक निजी कम्पनी को उद्योग हेतु दे दिया है और यहाँ पर वन क्षेत्र नष्ट कर उद्योग चल रहा है तथा यहाँ रहने वाले वन्य जीव भी सड़कों पर आकर मर रहे है |  इसके बाद आष्टा के निकट डोडी घाटी के  वन क्षेत्र की ऐसी ही स्तिथि है यहाँ पर पहले घने वन क्षेत्र को 4 लेन सड़क निर्माण के दौरान नष्ट किया गया फिर यहाँ पर खनन कर वन क्षेत्र को छलनी कर दिया गया और वर्तमान में यह पूरा क्षेत्र बड़े पैमाने पर हो रहे अतिक्रमण का शिकार है तथा यहाँ के वन्य जीव वाहनों का |  इन सभी जिलों में उक्त स्थानों के अतिरिक्त ऐसे दर्जनों स्थान और भी है जहा पर कला हिरण , चिंकारा , चौसिंगा, नीलगाय, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली , कबरबिज्जू, सियार , लोमड़ी आदि का आवास नष्ट हो जाने के कारण वो सड़कों पर आकर दुर्घटना का शिकार हो रहे है जबकि भोपाल के निकट तो बाघ, तेंदुआ , भालू भी वाहनों के शिकार बन चुके है |   इन सभी मामलों में ज़िला प्रशासन और वन विभाग तो उदासीन है ही पर मध्यप्रदेश प्रदूषण नियत्रण बोर्ड,  पर्यावरण नियोजन एवं समन्वय संगठन (एप्को ) भी अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहे है |