संस्कार

    रानी का विवाह होने को अठ्ठारह बसंत हो गये ,पर विवाह के बाद रानी सिर्फ नाम ही रह गया था ससुराल मै पूरे परिवार के काम का बोझ और सास ससुर ननंद के दिल छलनी कर देने वाले ताने और पति महोदय राजकुमार नाम के थे और काम हिटलर का शराब पीना और शाम को रानी की धुनाई करना प्रतिदिन का काम फिर भी रानी जो थी “नारी सब सहती” उफ्फ न करती ,और अपना समय बच्चों के लिए गुजारती ना ही कभी मायके में दुःखी हूँ ,यह ,बताया ईश्वर में अथाह प्रेम रानी रखती,, कहती भगवान की मर्जी फिर भी पति पर पूर्ण श्रद्धा और हिन्दू नारी का समर्ण जो रानी की परिस्थती देखे व सुने तो ऑखों  से अश्रु ,बाहर की यात्रा करने को मजबूर हो जाते ।फिर समय ने करवट बदली और उसका पति राजकुमार पक्षाघात (लकवा) की चपेट में आ गया एक हाथ और एक पैर ने काम करना बंद कर दिया परिवार के कोई भी सदस्य राजकुमार की तिमारदारी करने को तैयार नहीं ,और भगवान से प्रार्थना करते  एसे भुगतने से तो इन्है उठा ले भगवान,ऐसा सुनते ही रानी बनी दुर्गा आज के बाद इस तरह की कोई बात नहीं करना वरना इनके बारे मे मैं ऐसा कदापी नही सुन सकती हूँ ,मेरा पति मेरा देवता है और उनके लिए मैं अपनी अंतिम सांस तक लगा दुगी ,यह सब वार्तालाप राजकुमार पलंग पर पड़े पड़े सुन रहा था और ऑंखों से पश्चयाताप के आंसु अनवरत यात्रा कर रहे थै और सोचने को मजबूर कर रहे थै कि मैने मेरी धर्मपत्नि के साथ अन्याय किया फिर भी वह मेरी सेवा में लगी है और परिवार के लिए सबकुछ किया और मेरे मरने कि दुआ कर रहै है ।रानी की असीम  सेवा का प्रभाव और भगवान के आशीष से पति  पहले की तरह स्वस्थ हो गया और अब रानी को पति का सम्मान मिला ,संस्कार और धैर्य से रानी अब महलो की राज कुमारी हो गयी थी उसने अपने सेवाभाव से सबका दिल जीत जो लिया ,

                   (१)दोस्तों क्या रानी ने जो धैर्य रखा वह उचित था ? (२) क्या उसे पहले ही दुर्गा रूप धर कर परिवार व पति से संघर्ष कर अपने अधिकार के लिए लड़ना था ?

       ===रचनाकार ===

    डाँ.मुकेश भद्रावले

    हरदा मध्यप्रदेश