मेरी जीत भी क्या?
मेरी हार भी क्या ?
अपनों से लड़ कर,
जो हो हासिल,
सर पर ऐसा ताज भी क्या?
मैं हार जाऊँ तुझसे,
अगर तेरी यही कोशिश,
फिर मैं जीत जाऊँ तुझसे,
तो इसमें बात भी क्या ?
मैं तो समझौता कर लूँ,
हर हालात से बेशक,
तुझे पाकर जो सब खो दूँ,
तो ऐसा साथ भी क्या ?
ये तेरी फितरत है की,
नहीं तू बदलेगा कभी,
जहाँ मिले साथ में कांटे भी,
तो ऐसा गुलाब भी क्या ?
तेरी ख़ुशी की खातिर,
लो मैं हार भी जाऊँ,
क्या नहीं रूठेगा तू,
फिर इसके बाद भी क्या?
मेरी हार तो मेरी है हार,
ये तो जानते सब,
कोई बताये मेरी जीत भी,
नहीं है मेरी हार भी क्या ?
सौरभ गुप्ता ‘साहिल’
कायमगंज (फर्रुखाबाद)-209502