जंगल की अनकही व्यथा

कहां अब वो घने जंगल,

कहां अब वो सुंदर वन,

किसी ने अपने स्वार्थ के लिए, काट दिए वो जंगल,

और बना लिए अपने घर।

स्वार्थ इतना चरम पर था कि,

मुख पशु – पक्षियो की वेदना, नजर नहीं आई,

और उजड़ गए उनके घर।

कहते हैं रास्तों में शेर, चीता, नीलगाय आ जाती है।

ज़रा कह दो उन 

मासूम गुनहगारो से,

कि जिन रास्तों से तुम 

गुज़र रहे हो 

वहा किसी के आशियाने 

हुआ करते थे।

जिसे 

किसी ने अपने स्वार्थ के लिए 

ध्वस्त कर दिए

और 

बसा लिए अपने आंगन।

सुहानी आंचलिया

जावरा, रतलाम (म. प्र.)