म्हारे क्रिकेटर बॉलीवुड से कम है के…

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657 

“बच्चा! कल भारत-पाक वाला वर्ल्ड कप मैच देखा क्या?” गुरु ठनठनलाल ने चिलम का कश खींचते हुए चेले ढुलमुलदास से पूछा।

“गुरुजी! कभी-कभी हमको आप पर संदेह होता है कि आप हमारे गुरु बने कैसे? गुरु बनने के लिए अध्ययन और तप करना पड़ता है। आप हैं कि जब देखो तब चिलम का कश खींचते हुए इधर-उधर की बातें करते रहते हैं। कभी जार्ज बर्नार्ड शॉ को पढ़ लेते तो आज यह सवाल नहीं करते।”

“बच्चा! उसने ऐसी कौनसी बात कह दी जो हमें पता नहीं है?”

“गुरुजी! जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा था कि क्रिकेट ग्यारह मूर्खों द्वारा खेले और ग्यारह हजार मूर्खों द्वारा देखे जाने वाला खेल है। अब हम यह खेल देखकर भला मूर्ख क्यों बनें? आप हमें समझदार बनाएँ या न बनाएँ लेकिन मूर्ख कतई न बनाइए। मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ। पैर पड़ता हूँ।” चेला ढुलमुलदास ने चिढ़ते हुए कहा।

“बच्चा! नाराज़ नहीं होते। हाँ यह सही है कि हम काम नहीं करते, लेकिन बैठे-ठाले काम की बातें करने में हमारा कोई सानी नहीं है। वैसे भी बात करने वाले काम करने वालों से ज्यादा कमाते हैं। नाम और दाम दोनों भी! इसलिए हमारी बातों को तुक्का या समय की खपत बिल्कुल मत समझना।” गुरु ने गहरी साँस लेते हुए कहा।

“गुरुजी! क्षमा करें। वैसे इस मैच में क्या खास बात थी जो हमें देखना चाहिए था?” चेले ने हाथ जोड़ते हुए पूछा।

“बच्चा! अब की न पते की बात। वैसे मैच में कुछ नहीं था। जो था वह मैच के बाहर था। हमने देखा कि बॉलीवुड की तरह क्रिकेट भी गंदगी का दलदल बनता जा रहा है। जहाँ एक ओर अभिनेता सिनेमा में नायक और विज्ञापनों में खलनायक बनकर गुटखा, सिगरेट, शराब का प्रचार-प्रसार करते हैं, ठीक उसी तरह क्रिकेट स्टार जुआ, सट्टा खेलने की नसीहत देते हैं। इतना ही नहीं, टीवी के परदों पर आँखें गड़ाए बेरोजगार कहीं भाग न जाएँ इसके लिए वे जल्दी से आउट हो जाते हैं और बार-बार काम-धाम के बजाय ड्रीम एलेवन, क्रिकेट एलेवन, इसका एलेवन, उसका एलेवन का सट्टा खेलने का मशविरा देते हैं।” इतना कहते हुए गुरुजी एकदम से चुप हो गए।

“गुरुजी! आखिर आप कहना क्या चाहते हैं?” चेले न उम्मीद भरी आँखों से उनकी ओर ताकते हुए पूछा।

“बच्चा! मैंने बहुत पहले एक ईमानदार खिलाड़ी को देखा था जो दिल की बात जुबान से बोलता था। वह अक्सर कहा करता था – जब तक बल्ला चल रहा है, तब तक ठाठ है। और जब नहीं चलता, तब…” यह कहते-कहते गुरु की आँखों में आँसू आ गए।“गुरुजी! तो क्या आज के खिलाड़ियों में ऐसी ईमानदारी नहीं है?” चेला गुरुजी की ओर देखते हुए भोले स्वर में पूछा।“बच्चा! आज के खिलाड़ी तो और ईमानदार हो गए हैं। देखते नहीं किस तरह खुल्लम-खुल्ला सट्टाबाजी करने के लिए दावत दे रहे हैं। अब तो उनका एक ही आशय है –

दुनिया जाए भाड़ में, हम तो रहे आड़ में।

पैसा हमें झोंकना है, पेट की मराड़ में।।”