कमल क्रोड़ सा प्रेम छुपा है,
पलकों के इस घूँघट में |
प्रथम मिलन की प्रथम स्मृति,
पलकों के इस घूँघट में ||
मन आशंकित उलझ न जाए,
नयन मेरे कजरारे से |
प्रिय से ओझल आज हुए हैं,
पलकों के इस घूँघट में ||
पल पल बाँध रही मैं प्रिय को,
आलिंगन के इन स्वप्नों में|
भय में डूब रही है श्वासें,
पलकों के इस घूँघट में ||
सजल नयन से सरिता बहती,
बहक रहे व्याकुल उद्गार|
फिर भी थाम रही हूँ खुद को,
पलकों के इस घूँघट में||
ये नश्वर तन तुम्हें समर्पित,
मन शाश्वत पर तुम हो प्रिय|
किन्तु दर्द बहकता जाता,
पलकों के इस घूँघट में||
खुद ही खुद से बातें करती,
तुम्हें पुकारूँ मैं दिन रात|
कहाँ छुपे हो बोझिल मन है,
पलकों के इस घूँघट में||
हृदय मिलन की विरह धरा पर,
विस्मित हूँ पाकर तुम्हें प्रिय|
खो ना जाना प्रणय निभाना ,
पलकों के इस घूँघट में||
डॉ. निशा पारीक
जयपुर राजस्थान