किरण की शादी के बाद यह पहली दिवाली है, वह बेहद उत्साहित थी। उसने पूजा की सारी तैयारी कर घड़ी देखी पति डॉक्टर कौशिक के आने का समय हो चुका था। अस्पताल के माहौल में कहीं भुल ही न गये हों, आज दीवाली है सोच कर उसने फोन लगाया।
“बस निकल ही रहा हूं, तुम पूजा की तैयारी करो मैं आधे घंटे में पहुंच जाउँगा।”
“आधा घंटा क्यों? रास्ता तो दस मिनट का है।”
“हमारी पहली दिपावली है तुम्हारे लिए…”
“नहीं… नहीं… गिफ्ट-उफ्ट की चिंता छोड़िये, आप तो बस जल्दी घर आ जाईये! पूजा का वक्त हो गया है।”
“बस फोन रख कर निकल ही रहा हूँ।”
किरण फोन रख कौशिक का इंतजार करने लगी। आधा, एक अब तो दो घंटें होने को आया, कौशिक नहीं आए। जाने तोहफा में चांद-तारे ला रहें या कोई जादुई चिराग! सभी के दरवाज़े पर दीप जल चुके थे। लोग पटाखे चला रहे थे, बच्चे फुलझड़ियाँ हवा में लहरा रहे थे। हर ओर उमंग-उत्साह का वातावरण था।
किरण का मन उदास हो आया, वह पिछले आधे घंटे से कौशिक को फोन करने का प्रयास कर रही है, उफ! यह नेटवर्क….उसने एक बार फिर कोशिश की, फोन स्विच ऑफ बता रहा था। किरण की उदासी अब क्रोध में बदल गई। वह चुपचाप जाकर कमरे में लेट गई।
कुछ देर यूं ही करवटें बदलती रही। एकाएक उसे ख्याल आया, कहीं कौशिक के साथ कोई अनहोनी…. ! वह हड़बड़ा कर उठ बैठी, उसने सीधे अस्पताल का रूख किया। रात के दस बज चुके थे। किरण ने बाहर सड़क पर आकर देखा, पटाखे चलाने वाले बच्चे अपने-अपने घरों में जा चूके थे। बाहर इक्का-दुक्का लोग ही नजर आ रहे थे। घरों के बाहर जलाए गये दीप कुछ तो बुझ चुके थे कुछ टिमटिमा रहे थे। बस बिजली द्वारा की गई रोशनी और झालरें ही चमक रहे थे।
अस्पताल पहुंचने पर किरण को जानकारी हुई। डॉक्टर कौशिक निकलने ही वाले थे कि, एक सीरियस पेसेंट आ गया। जिसका ऑपरेशन करना अति आवश्यक था। वैसे उनकी ड्यूटी खत्म हो चुकी थी। पर उन्होंने तुरंत ऑपरेशन करने का निर्णय लिया, जो अब तक चल रहा है। किरण ऑपरेशन थियेटर की ओर बढ़ गई। वह पहुंची ही थी कि कौशिक दरवाजा खोल बाहर आये। इंतजार मे व्याकुल एक बृद्ध दंपति तेजी से उनकी ओर बढ़ा।
कौशिक ने प्रशन्नता भरी आवाज मे कहा, “अब चिंता की कोई बात नही, यदि आने में तनिक भी बिलंब हो जाता या ऑपरेशन आज नहीं हो पाता तो…. !”
इतना सुनते ही दोनों भर्राई आवाज में उन्हें दुआएं देने लगे। तभी कौशिक की नजर किरण पर पड़ी, “सॉरी किरण! मैं समय पर घर नहीं पहुंच पाया…”
कौशिक कि बातों से किरण का परिचय जान वो लोग किरण की ओर पल्टे और जी भर कर दुआएँ देने लगे। वृद्धा बोली, “भगवान तुम्हारी हर मुराद पूरी करे बेटी! तुम्हारा सुहाग अमर रहे, गोद सदा ही हरी रहे। तुम्हारे जीवन की हर रात दीपावली सी रौशन हो! आज के दिन तुमने अपने पति को अस्पताल आने दिया! हम कई जगह गये पर डॉक्टर छुट्टी पर थे। तुम्हारे पति मेरे बेटे का ऑपरेशन न करते तो आज रोशनी की इस रात मेरे घर का इकलौता चिराग बुझ जाता!”
तभी नर्स ने आकर पेशेंट को वार्ड मे शिफ्ट किये जाने की सूचना दी। दोनो वार्ड की ओर दौड़ पड़े।
कौशिक किरण के नजदीक आते हुए बोले, “माफ करना प्रिय! आज मैं तुम्हारे लिए कोई तोहफा भी नही ला पाया।”
किरण ने प्रेमभरी निगाहों से कौशिक को देखते हुए कहा, “कौन कहता है? आपने मुझे तोहफा नही दिया! आपकी कर्तव्य निष्ठा के कारण आज इस वृद्ध दंपति ने सच्चे दिल से जो दुआएं दी है उसकी बराबरी किसी खरीदे गये किमती से किमती तोहफे से भी नहीं हो सकता।”
कौशिक ने आदर भरी दृष्टि से अपनी पत्नी की ओर को देखा। दोनों मुस्कुराते हुए घर की ओर चल दिये।
ऊषा कुशवाहा
फ्लैट न-410, दूसरा तल्ला