कितना अजनबी,पराया सा दिखता है वो।
कितना अजनबी,पराया सा दिखता है वो।
अपनी सांसों में छुपा रखता है वो।
रोजाना रूबरू हो न नहो फिर भी।
जेहन में बसा रखता है वो।
कितनी मासूम है माशूका शायद ।
जाते वक़्त वजूद छोड़ अपना जाता है वो।।
बेरुखी का आलम तो देखिए ।
ख्यालों से अपने भिगा जाता है वो।।
इश्क तो रूहानी रिश्ता है जनाब ।
झुकता मैं हूं,सजदे करा जाता है वो।।
महकती रहे महकती सांसों की डोर ।।
धमनियों में लहू सा बहता रहता है वो।।
उसकी नेकी का सिला देखिये संजीव।
मुझ फकीर से याराना रखता है वो।।
संजीव ठाकुर रायपुर 9009 415 415