#खंजन की करीब एक दर्जन जातियां प्रजातियां दुनिया में पाई जाती हैं।
# खंजन की 6 प्रजातियां भारत प्रवास पर आती है।
# अपनी सुंदर आंखों के कारण खंजन दुनिया भर के साहित्य में प्रसिद्ध है।
# सिर पर चोटी निकलने के कारण खंजन के अदृश्य होने की बात कपोल कल्पित पाई गई है।
# बादलों ने सफेद रम्सली हिला कर धरती को अलविदा कह दिया है।। तालाबों का जल शांत हो गया। कुमुदिनी कमल खिलने लगे हैं। आसमान में भेडूला और क्वाक के दल अा गए हैं। खेत खलिहान और बस्तियों धोबी घाट खंजन अा कर इठलाने लगे हैं।
मैथिलीशरण गुप्त की उर्मिला अयोध्या में खंजन आए देख कर अपनी सखी से कह रही है
निरख ,सखी ये खंजन आए।
फेरे उन मेरे रंजन ने,नयन इधर मन भाए।
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स्वागत स्वागत शरद भाग्य से मैंने दर्शन पाए।
नभ ने मोती वारे , तो ये अश्रु अर्घ्य भर लाए।।
लक्ष्मन राम के साथ वन में है और विरहिनी उर्मिला खंजन को देख खुश हो रही हसीन क़ि खंजन के नयनों से उनके प्रियतम उन्हें निहार रहे हैं। उर्मिला शरद ऋतु का स्वागत करती है जिसके कारण खंजन आए हैं।
खंजन एक प्रवासी पक्षी है। इसकी कजरारी आंखें बरबस ही सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। लगता है किसी ने इसकी आंखों में अभी-अभी काजल लगाया है। इसकी भौंहें बहुत सुंदर होती हैं।
खंजन पक्षी भारत में बरसात समाप्त होने के बाद इडी बार अक्टूबर महीने के आखिरी सप्ताह में भारत आए हैं। खंजन पक्षी साइबेरिया ,जापान,रूस आदि ठंडे देशों, मुल्कों से उड़कर सर्दियां बिताने भारत आता है। और भारत में बरसात शुरू होते ही, मई-जून में उड़ कर फिर अपने देश चला जाता है।
खंजन की सुंदर आंखें, कवियों और शायरों को बहुत लुभाती रही हैं। महाकवि तुलसीदास ने लिखा है
__ जानि सरद ऋतु खंजन आए।
पाय समय जिमि सुकृत सुहाए।।
रामचरितमानस के किष्किंधा कांड में तुलसीदास ने यह चौपाई लिखी है।
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जब राम सीता के साथ अयोध्या से वन जा रहे हैं तो रास्ते में स्त्रियां पूछती हैं कि तुम्हारे साथ ये सांवरे सलोने कौन है?
सीता उन को आंखों के इशारे से बताती हैं
__ खंजन मंजू तिरीछे नयननि ।
निज पति कहेहू तिन्हहि सिय सैनननि।।
खंजन जैसे सुंदर नयन वाले पुरुष हमारे पति हैं।
सुप्रसिद्ध कथाकार अमृतलाल नागर ने अपने उपन्यास खंजन नयन में एक पद का उल्लेख किया है_
खंजन नयन रूप रस माते ।
उड़ उड़ जात निकट श्रवनन के
उलट पलट टा टनक फदाते।।
दरपन चारु चपल अनियारे
तन पिंजरा न समाते।।
प्रसिद्ध कथाकार अमृतलाल नागर ने सूरदास के जीवन पर खंजन नयन और तुलसीदास के जीवन पर उपन्यास लिखे हैं।
हमारे प्राचीन साहित्य से आधुनिक साहित्य के कवियों, लेखकों और शायरों ने खंजन पक्षी की आंखों की सुंदरता का वर्णन किया है।
खंजन पक्षी को भारत में धोबी पंछी भी कहते हैं। यह खंजन पक्षी से बहुत मिलता जुलता पंछी है।यह खंजन पक्षी घोबी घाटों के पास अपनी दुम ऊपर नीचे करता मिल जाएगा। खंजन पक्षी साइबेरिया रूस चाइना कोरिया मंचूरिया आदि देशों से भारत में सर्दियां शुरू होते ही अक्टूबर में आ जाते हैं। इन्हे गांव में नदी नालों , तालाबों, झीलों के किनारे अकेले या जोड़े में चलते फिरते देखा जा सकता है। कीड़े मकोड़े दाने पतंगे आदि खाते हैं। भारतीय गौरैया के आकार से थोड़ा बड़ा खंजन पक्षी पाया जाता है। अपने खाने की तलाश में गांव के किनारे, नहरों के किनारे जहां भी थोड़ा पानी होता है खंजन पक्षी दुम ऊपर नीचे करते दिखाई पड़ता है। भारत में काला सफेद खंजन ,पीलिकिया खंजन,भश्म सिर खंजन, खैरई या खंजन, सफेद खंजन,मामोला यानी काल कंठ खंजन अक्सर दिखाई देते हैं।
जोडा बांधने में खंजन बड़ा शर्मिला पक्षी है। मार्च से अप्रैल तक इसका प्रजनन काल होता है। तब खंजन नाच गाकर मादा को रिझाया करता है। मई-जून में खजनों का जोड़ा हिमालय पहाड़ की ओर उड़ जाता है । और ऊंचाई पर जाकर किसी पेड़ की कोटर में। या घास फूस के मैदान में कटोरे नुमा घोंसला बनाकर मादा चार पांच अंडे देती है। अंडों से बच्चे निकलने के बाद खंजन झुंड के झुंड बनाकर हिमालय पर्वत पारकर ठंडे प्रदेशों में चले जाते हैं। और फिर हर साल सितंबर अक्टूबर में सर्दियां शुरू होते ही हिमालय पार कर भारत आ जाते हैं।
खंजन पक्षी के बारे में कई भ्रांतियां पाई जाती है। कुछ लोग कहते हैं की खंजन पक्षी के मई-जून में सिर पर बालों की चोटी निकल आती है इसमें खंजन पक्षी अदृश्य हो जाता है किसी को दिखाई नहीं पड़ता कहीं बाहर नहीं जाता भारत में ही रहता है। अगर कोई व्यक्ति खंजन पक्षी को पकड़कर उसकी चोटी काट ले और अपने पास रख ले तो वह भी अदृश्य हो जाता है। लोगों की निगाहों में वह दिखाई नहीं पड़ता।
कुछ लोगों का कहना है खंजन पक्षी यदि हाथी के मस्तक पर बैठा दिखाई पड़ जाए तो आदमी राजा बनता है। जांच के बाद वैज्ञानिकों ने यह दोनों बातें झूठी पाई हैं।
खंजन पक्षी अकेले ही विचरण करता है। अंडों से बच्चे निकलने के बाद यह पक्षी झुंड बनाकर साइबेरिया रूस जापान और चाइना आदि देशों में चला जाता है जहां का यह निवासी है। ये पक्षी झुंड में चार 4 हजार किलोमीटर की यात्रा करता है। रात में चांद और तारों को अपना पथ प्रदर्शक मानकर यात्रा तय करता है। वैज्ञानिकों ने इसके पैरों में छल्ला बांधकर यह पता लगाया कि ये पक्षी कहां से आता है और कहां जाता है । जांच में पता चला कि इस पक्षी को दिशा और स्थान का समुचित ज्ञान होता है इसी कारण यह अपने पुराने स्थान पर ही प्रवास करने आता है और निश्चित समय के बाद उड़ जाता है। खंजन पक्षी भारत में घोंसला नहीं बनाता और कहीं भी किसी पेड़ पर रात बिताकर सुबह के अपने खाने की तलाश में निकल पड़ता है। अधिकांश यह पंछी अकेले ही रहता है। खंजन अपना घोंसला कहां बनाता है और कब अंडे से बच्चे निकलते हैं कोई नहीं देख पाता इस कारण इसे आकाश में घोसला बनाने वाला पंछी कहा जाता है। इसका खंजन नाम यानी आकाश में जन्म लेने वाला पंछी इसीलिए पड़ा है। अपनी सुंदर आंखों के कारण यह पक्षी सुंदरियों का चहेता पक्षी है। सुंदर खंजन पक्षी का आना शरद रितु की शुरुआत माना जाता है।
##शिवचरण चौहान
कानपुर