नन्हा सा मन मेरा
जुड़ नहीं पाता हैं
आपकी यादों से
भरा है मेरा दामन
करू लाख कोशिश
ये छूट नहीं पाता हैं
वक़्त का पहाड़
मोम सा पिघलता है
रोक लेती हूँ पलको
में समंदर को पर
आंसुओ का सैलाव
अब रुक नहीं पाता हैं
नन्हा सा बचपन मेरा वो
परियो की कहानी
जिद करके अपनी
सारी बातें मनवानी
पापा..अब कोई पूरी
कर नहीं पाता हैं
अल्हड सा बचपन
खोया था मैंने ससुराल
से रिश्ता जोड़ा था मैंने
तब ही पता चला मुझे
पापा कैसे कन्यादान दिया जाता है
सबकुछ दिया आपने मेरी
खुशिओ को जोड़ा
ऊँगली पकड़ के दिया
सहारा कभी राह मे ना छोडा
आपके आशीर्वाद से मेरा
आँगन खिलखिलाता हैं
आपकी बातें सुनना और
अपनी भी सुनाना कभी
आपका गुस्सा देखकर
मेरा डर जाना ,पापा
वो वक़्त नहीं मिलता
अब मुझे बड़ा याद आता है
सारी खुशियां जीवन की
आज मेरे पास है बस
आप नहीं हो पास मेरे
बस आपका एहसास है
आपके “एहसास” से
मन बहल नहीं पाता है
ना अपनी कहते हो न
मेरी ही सुन पाते हो
कितना भी पुकारू आपको
आप एक बार भी न आते हो
किस नगरी मे चले गए
वहां कोन सा रास्ता जाता है
याद आपकी आती है जी
भर कर रो नहीं पाती हूँ
ससुराल की मर्यादा में
रह कर अपना फ़र्ज़ निभाती हूँ
एक बार आ जाओ पापा
मन “पापा” कहने को तरस जाता है
आपकी याद मे वक़्त कैसे
गुजर जाता है एक बार आ
जाओ पापा, ये कह कर मन
बच्चे की तरह बहल जाता है
सरिता प्रजापति
दिल्ली