चलो मिलके हम तुम दिवाली मनाएँ
तेरे मेरे मन का अँधेरा मिटाएँ
सितारों को सूरज सा जगमग करे हम
अमावस को मिलकर पूनम हम बनाएं।
बुन गए शिकवे-शिकायत के जाले
उजाले हो दिन के, दिखे काले-काले
बुहारें सभी प्रेम के आचमन से
खुशी की कली चुन के चिलमन सजालें।
ना जब तक हटेंगे ये साये वहम के
मिटेंगे नहीं सारे गिले भरम के
दिए जगमगाते ना कुछ कर सकेंगे
घने होंगे जब तक अँधेरे करम के।
मिली जिंदगी किसको कल का पता है
यहीं नर्क भी, स्वर्ग का रास्ता है
चलो माँग ले जिंदगी से उधारी
बकाया चुका दे जहाँ खुशियाँ लापता हैं।
हुए गुमशुदा कल को मन ढूँढता है
हँसी में सराबोर बचपन ढूँढता है
जो बीता नहीं लौट के आ सकेगा
तो क्यों ना किसी बचपन को हँसाए।
महिमा तिवारी
रामपुर कारखाना,
देवरिया-उत्तर प्रदेश