दीप पर्व

दीप पर्व में शपथ हैं लेते 

मन का दीप जलाएंगे,

हम नारी हैं नर की जननी 

भू प्रकाश फैलाएंगे।

भस्म करेंगे भय को मन से 

साहस वृक्ष उगाएंगे,

नेह संग निज स्वाभिमान के 

नए बीज बो जायेंगे।

राहों के अनुगामी है और

सृजनहार नई राहों के,

है उजास हमारे भीतर 

दीपक हम अंधियारों के।

प्रथम गुरु पर गुरु की गुरूता 

का सहते भार नहीं,

घर की रौनक हमसे है 

पर हम धरते अहंकार नहीं।

मानवता के साधक हम 

और वाहक हैं उजियारों के,

सुन्दर भावों को धारण कर 

करें प्रकाशित तारों को।

अग्निपरीक्षा दी हमने 

फिर भी जीता विश्वास नहीं,

भू की कोख में समा गए 

रह पाए राम के पास नहीं।

जग के उजियारे के संग 

मन को रोशन कर पायेंगे,

रामराज्य यदि लाना है तो 

सिय को मान दिलायेंगे।

ज्योति दीप से गांठ खुलेगी 

द्रोह द्वेष के तालों की,

मावस पूनम हो जायेगी 

लड़ियां सजेगीं तारों की।

सीमा मिश्रा,बिन्दकी, 

फतेहपुर उ०प्र०