वो स्त्री हैं मान और सम्मान
की अधिकारी हैं
उसपे विश्वास कर के देखिए ….
प्रकृति की सबसे सुंदर
और कोमल रचना हैं
तन और मन दोनों ही
प्रेम योग्य होता हैं ……
स्त्री के प्रेम को कभी भी
परखने की भूल ना करें
उसके मन को देखें
समझे कि वो क्या चाहती हैं ….
उसके अस्तित्व पे सवाल कैसा?
वो एक एसी नदी हैं जो अपने
आप जाने कितना कुछ समेट
कर बहती चली जाती हैं…..
दो घरों, दो कुलों की मान
होती हैं स्त्री
फिर भी कहाँ उसे वो जग में
सम्मान मिलता हैं …….
अपने हक़ के लिये जब जब लड़ी
बदतमीज़ कहलाई गयी हैं
कदम मिला कर जमाने से चली
तो बदचलन पुकारी गयी हैं…….
स्त्री सम्मान पे सौ सौ बातें बोलने
वालों के घर कन्या भ्रूण हत्या की
लाइन लगी हैं
अपने ही सम्मान के लिये बार बार
मारी गई हैं …….
रीना अग्रवाल, सोहेला (उड़ीसा)