बांधकर बाल अपने,
जो एक लट माथे पर लटकाती हो!
लगा के होठों पर सुर्ख लाली,
जो माथे पर बिंदिया सजाती हो!
आँखों में दिखावटी गुस्सा,
कमर में ये जो पल्लू दबाती हो!
करती हो मुझसे इतना प्यार,
अपनी जान को मेरी जान बनाती हो!
लिपट कर मेरे पीछे कस के,
तुम जो गले से लगाती हो!
सोता हूं जब मैं देर तक,
अपने गहरे चुंबन से जगाती हो!
ख्बाब सब मेरी आँखों में प्यारे,
केवल तुम्हीं तो जगाती हो!
हाँ ये मेरी कभी थी आरजू,
पूरा करने को सपनों में आती हो!
पूरा करने को सपनों में आती हो…..!!
सौरभ गुप्ता ‘साहिल’
कायमगंज (फर्रुखाबाद) 209502