है यह शोर कैसा या आमूमन मचा हाहाकार है,
जनता या सरकार, कौन कितना जिम्मेदार है।
नैतिकता की मौलिकता के छत से जब प्रबुद्धता दृष्टिपात करता है तब उसे हंसी भी आती है और अमूमन गुस्सा भी। बहुतायात आबादी परेशान मकां में ही गुजर कर रहे हैं, हर जगह चीख और पुकार की विद्यमानता है। एक दुसरे पर दोषारोपण करके अपनी ज़मीं साफ करने में लगे हैं पर साफ होनेसे रहा, खुद से न सही, एक दुसरे की जमीन तो एक दुसरे के दोषों से आबाद हो रहें हैं।
जनता सरकार को, और सरकार जनता को, जिम्मेदारी का गमला थमा रही है, अंततः गमला टूटता है तब जिम्मेदारी लाचारी के खाट पर बदहवास हालात में जिम्मेदार नागरिक या तंत्र को गुहार लगाती है,कहीं से कोई पुकार सुन कर अपने कंधों पर बैठा लेता है तो तसल्ली अन्यथा हाहाकार का शोर सुनाई पड़ता रहता है।
जनता सरकार बनाती है अतः प्रजातांत्रिकव्यवस्था में पहली जिम्मेदारी जनता की सिद्ध होती है क्योंकि सरकार में जनता और जनता की ही सरकार होती है। जनता अपनी जिम्मेदारी सरकार बना कर जनप्रतिनिधि को सुपुर्द कर देती है पर सुपुर्दगी की हकीकत अजीबोअजीब है। जनप्रतिनिधि को चयनित होने के लिए इन्हें जनता को मुंहमांगा कीमत चुकानी पड़ती है फिर तो ऐसी सरकार में शामिल जनप्रतिनिधि अपनी लागत का कई-कई गुणा जमा करने में तीव्रता से लग जाते हैं। इस क्रम में अनैतिकता फलने -फूलने लगती है फिर तो व्यक्ति समाज और राष्ट्र खोखला होने लगता है। अब कोई बताए ऐसी सरकार देश हित में काम कर सकती है ? जबाब होगा कदापि नहीं।
इस प्रकार इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि पहली जिम्मेदारी जनता की और दूसरी जिम्मेदारी जनता से निर्मित सरकार की। जनता सरकार से ज्यादा जिम्मेदार है। सरकार की जिम्मेदारी सीमित समय के लिए है जबकि जनता की आजीवन।
विनसा “विवेका”
( जमशेदपुर, झारखण्ड )