बचपन के वो गीत !

 स्याही-कलम-दवात से, सजने थे जो हाथ !

 कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहें फुटपाथ !!

 बैठे-बैठे जब कभी, आता बचपन याद !

 मन चंचल करने लगे, परियों से संवाद !!

 मुझको भाते आज भी, बचपन के वो गीत !

 लोरी गाती मात की, अजब-निराली प्रीत !!

 मूक हुई किलकारियां, चुप बच्चों की रेल !

 गूगल में अब खो गए,बचपन के सब खेल !!

 छीन लिए हैं फ़ोन ने, बचपन के सब चाव  !

 दादी बैठी देखती, पीढ़ी में बदलाव !!

 बचपन में भी खूब थे, कैसे- कैसे खेल !

 नाव चलाते रेत में, उड़ती नभ में रेल !!

 यादों में बसता अभी, बचपन का वो गाँव !

 कच्चे घर का आँगना, और नीम की छाँव !!

 लौटा बरसों बाद मैं , उस बचपन के गाँव !

 नहीं बची थी अब जहां, बूढी पीपल छाँव !!

 नहीं रही मैदान में, बच्चों की वो भीड़ !

 लगे गेम आकाश से, फ़ोन बने हैं नीड़ !!

 धूल आजकल चाटता, दादी का संदूक !

 बच्चों को अच्छी लगे,अब घर में बन्दूक !!

 प्रियंका सौरभ