देखा मैंने

प्रकृति को आज नजदीक से 

निहारा मैंने। 

कुछ दर्द बयां करती-सी उसे 

देखा मैंने। 

सड़क किनारे प्रदूषण से दुःखी 

पाया मैंने। 

कटे ठूँठों को फिर से फूटते 

देखा मैंने। 

आज सुबह बादल गिरते देख 

रतनमाल जंगल में पहुँच गया। 

सागवान को खाखरे से लिपट कर 

बातें करते देखा मैंने। 

देखो वो आ गया 

आनन्द लूटने, हमें रोंधने 

तना काटने। 

कटे तने पऱ सूखी अश्रु धार को 

देखा मैंने। 

मनुज के शुष्क हृदय की तरह 

नदी में सूखे कंकड़ पत्थरों को  

देखा मैंने। 

आबाद नदी को भी अब 

पतली धार में बदलते 

देखा मैंने। 

छोटे छोटे तलबों में जलचरों को 

आकाश की ओर निहारते 

देखा मैंने। 

राजकुमार इन्द्रेश 

प्रधानाचार्य /साहित्यकार 

जयपुर राजस्थान 

मो. 9001311561/800081487