सुनो लड़की,
तुम खुलकर हँसना…
सड़ी-गली मान्यताओं पर,,
अनुचित बंदिशों पर,
मत करना परवाह
कुंठित मानसिकता की
तुम खुलकर हँसना…..
जब-जब कोई चाहे
इरादे तुम्हारे तोड़ना
कोई चाहे तुम्हें गिराना
नोचना चाहे परों को
ताकि उड़ न सको तुम
खुले,ऊँचे गगन पर
तब तुम खुलकर हँसना…
गिरकर फिर उठना,
अपने पैरों पर खड़ी होना
और तौलना हौसला अपना
क्योंकि कुछ उड़ानें
परों से नहीं,
हौसलों से तय की जातीं हैं
और तुम्हारा खुलकर हँसना,
जताता है कि तुम हारी नहीं,
तुममें बहुत हौसला है।
✍ श्वेता सक्सेना
मालवीय नगर ,जयपुर