मैं कौन हूं?

मुझसे कोई पूछता है-

मैं कौन हूं,

क्या काम करता हूं,

मेरी पहचान क्या है?

प्रतिभा तो है।

किंतु प्रतिभा की कदर कहां, 

अब बेमोल है-

क्योंकि!

प्रतिभा अपनी पहचान के लिए-

दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है।

निरुत्तर सा मैं ठगा का ठगा रह जाता हूं!

कभी मैं पढ़ता था,

अब भी मैं पढ़ता हूं

कभी डिग्री और मार्कसीट के लिए

अब नौकरी नहीं, 

एक पहचान के लिए-

मान-सम्मान और अभिमान के लिए

कि लोग कहे,

देखो यह सरकारी नौकर है,

इसकी महीने की आमद है

किस्तों को भरता हुआ

रिश्तों से दूर-

अपनों से नज़र बचाता हुआ

कहीं कोई मांग न ले

रिश्तों में दरार न हो-

क्योंकि हम तो बंधुआ मजदूर हैं

घर से आफिस, आफिस से घर

एक दिन की छुट्टी भी,

हमारे लिए हमारी नहीं है

पेशगी है बड़े साहब की-

हिदायत के साथ, “जाओ बुलाने पर आ जाना।”

बच्चे भी मुंह ताकते हैं

साथ घूमने के लिए-

लम्बे सफ़र पर जाने के लिए,

समय है पर पैसा नहीं, पैसा है और समय नहीं

क्योंकि मैं सरकारी नौकर हूं

या बेरोजगार, 

नौकरी के लिए तड़पता- 

बंधुआ मजदूर बनने को बेताब, 

मेरी एक पहचान बने, 

मैं ग़ुलाम हूं, 

सरकारी नौकर कहो या बंधुआ मजदूर।

-अखिलेश कुमार अरुण

ग्राम-हजरतपुर,पोस्ट-मगदापुर

जिला-लखीमपुर-खीरी उ०प्र० २६२८०४